“क्या आप डाँ. बलदेव को जानते हैं?

बसंत राघव
रायगढ़ कथक घराने का प्रचार – प्रसार सबसे पहले डाँ. बलदेव ने ही किया था। तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने ही सर्वप्रथम रायगढ़ कथक घराना को अपने तर्कपूर्ण लेखों से परिभाषित भी किया। लेकिन कुछ अति महत्वाकांक्षी कलाकार इसका श्रेय भी अपने हिस्से कर लेना चाहते हैं, तभी तो वे उनके नाम का उल्लेख करना जरूरी नहीं समझते। कहने का मतलब यह है कि रायगढ़ कथक घराने को प्रसिद्धि डाँ. बलदेव और यहां के कथक कलाकारों ने दिलाई। बाद के लोग शोधा र्थी मात्र हैं, क्योंकि उनमें स्वाभाविक मौलिकता की कमी है।
“रायगढ़ कथक घराना” को डाँ. बलदेव ने 1979 में रंग-संधान के संपादक अनिल कुमार और 1980 की संगीत पत्रिका को संप्रेषित किया था । मासिक संगीत में प्रकाशित उनका लेख “रायगढ़ कथक घराना’ ऐतिहासिक महत्व का है।
डाँ. बलदेव को देश के अनेक सुप्रसिद्ध नर्तकों के नृत्य देखने के भी सुअवसर मिले थे। उन्होंने संगीत नृत्य का साहित्य भी पढ़ा। नृत्यविदों की महत्वपूर्ण बातें भी सुनीं और अपने रायगढ़ के नर्तकों के नृत्य भी देखे। उनको उनमें एक विशिष्टता और अनन्यता दिखी। डाँ. बलदेव ने सुप्रसिद्ध कला समीक्षक स्वर्गीय अनिल कुमार की प्रेरणा से एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था “कथक रायगढ़ घराना”। सेठ महावीर अग्रवाल, किशन डालमिया के संयोजकत्व में जब यह लेख चक्रधर कला परिषद में पढ़ा गया, तो इसे व्यापक समर्थन मिला और अध्यक्ष प्रमोद वर्मा को भोपाल में आयोजित ’79 कथक शिविर’ में पढ़ने को दिया गया तो, वहाँ भी इसकी तारीफ़ हुई। जब यह लेख हेर-फेर के साथ प्रमोद वर्मा के नाम से ‘पूर्वग्रह 34’ में प्रकाशित हुआ तो इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, लेकिन मूल लेख ‘संगीत‘
(सितम्बर 1980) में प्रकाशित हुआ तो संगीतज्ञों ,नृत्यविदों के बीच बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया। समर्थन भी मिले और आलोचनाएं भी हुईं।
डाँ. राजू पांडेय लिखते हैं – “राजा चक्रधर सिंह और रायगढ़ के कथक घराने पर उनका शोध चमत्कृत कर जाता है। रायगढ़ की साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए केवल एक ही रास्ता है और वह डाँ. बलदेव के अन्वेषणपरक लेखों से होकर गुजरता है।”
“रायगढ़ रियासत की संगीत परंपरा और कथक के रायगढ़ घराने पर डॉ बलदेव का लेखन प्रामाणिक माना जाता है एवं स्रोत सामग्री के रूप में प्रयुक्त होता है। उनकी पुस्तक “रायगढ़ का सांस्कृतिक वैभव” रायगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास की मानक और संग्रहणीय जानकारी देती है।” आलोचक नंदकिशोर तिवारी लिखते हैं कि“रायगढ़ के सांगीतिक महत्त्व को प्रकाश में लाने का भगीरथ प्रयास डाँ. बलदेव ने किया। उन्होंने रायगढ़ के कथक के महत्व को दर्शाते हुए उसकी सम्यक विवेचना की। “
प्रसिद्ध व्यंग्यकार विनोद साव जी के एक फेसबुक पोस्ट पर नासिर अहमद सिकन्दर जी की टिप्पणी
“इंटरव्यू बहुत ही सार्थक रहा। चार पांच बातें तो उन्हें एक तरह स्थापित ही कर देती हैं, जिसके कि वे हक़दार थे।
एक, छत्तीसगढ़ के रामचन्द्र शुक्ल दो, छाया वाद और रायगढ के संगीत घराने पर उनका लेखन।
तीन, छत्तीसगढ़ के कवियों पर संकलन चार, वैसे एक बात यह छूटी है कि उन्होंने प्रगति वाद पर भी पुस्तक लिखी है। पन्त, निराला पर उन्होंने लम्बे लेख लिखे है। छत्तीसगढ़ ने उन्हें कोई मान सम्मान नहीं दिया, उनके अवदान पर न किसी ने लिखा। क्यों कि वे एक बेचारे सीधे सादे सिर्फ बड़े लेखक थे।”