संसद की एक स्थायी समिति पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की उम्र की एकरूपता के मुद्दे पर अगले हफ्ते विचार करेगी. इस संबंध में लाया जा चुका एक विधेयक 17वीं लोकसभा भंग होने के साथ निष्प्रभावी हो चुका है महिला और बाल विकास मंत्रालय में सचिव और ‘नेशनल कोलिशन एडवोकेटिंग फॉर एडोलसेंट कंसर्न्स’ (एनसीएएसी) तथा ‘यंग वॉइसेस कैंपेन’ के प्रतिनिधि 22 नवंबर को संसदीय समिति की बैठक में उसके समक्ष प्रस्तुत होंगे. बैठक में विवाह की आयु में प्रस्तावित बदलावों और महिलाओं संबंधी अन्य विधेयक पर चर्चा होगी. बैठक के एजेंडे के अनुसार कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति विभिन्न वैधानिक और स्वायत्त संस्थाओं के कामकाज पर महिला और बाल विकास मंत्रालय के सचिव का पक्ष सुनेगी. इन संस्थाओं में राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) और राष्ट्रीय सार्वजनिक निगम एवं बाल विकास संस्थान शामिल हैं
बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 को दिसंबर 2021 में लोकसभा में पेश किया गया था और इसे स्थायी समिति को भेजा गया. समिति के इस पर विचार करने के लिए उसका कार्यकाल कई बार बढ़ाया गया. अंतत: 17वीं लोकसभा के भंग होने के साथ विधेयक निष्प्रभावी हो गया. विधेयक निष्प्रभावी होने के बाद भी मुद्दों पर विचार करने के बारे में पूछे जाने पर समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, ‘‘इस मुद्दे को उठाने पर कोई रोक नहीं है.’’ बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 का उद्देश्य बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में संशोधन करके लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष करना है.
2006 के अधिनियम में कहा गया है कि न्यूनतम आयु से कम आयु में विवाहित शख्स 20 वर्ष की आयु से पहले यानी वयस्क होने के दो वर्ष के भीतर विवाह निरस्तीकरण के लिए आवेदन करने का हकदार है. विधेयक में इसे बढ़ाकर 23 वर्ष की आयु यानी पांच वर्ष करने की मांग की थी.