कट्टरपंथी TLP के आह्वान के बीच पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों को ईद के मौके पर नमाज पढ़ने से रोका

पाकिस्तान में अहमदी समुदाय पर जुल्म कम नहीं हो रहे हैं कट्टरपंथी TLP के आह्वान के बीच अहमदिया समुदाय को एक बार फिर ईद की नमाज पढ़ने से रोक दिया गया. PAK के सात शहरों में इस तरह के मामले सामने आए हैं. मंगलवार को जमात-ए-अहमदिया पाकिस्तान (JAP) ने यह दावा बड़ा किया है पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय अल्पसंख्यक की श्रेणी में आता है. पिछले दिनों अहमदिया समुदाय को कम से कम सात शहरों में ईद की नमाज अदा करने से कथित तौर पर रोका गया. पंजाब पुलिस ने दो अहमदियों को गिरफ्तार किया और तीन अन्य के खिलाफ ईद-उल-अजहा के दौरान पशु बलि देने की कोशिश के आरोप में केस दर्ज किया है. जमात-ए-अहमदिया पाकिस्तान ने कहा कि कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के सदस्यों ने दो अहमदियों को उनके धर्म से जबरन मुकरने पर मजबूर किया. हाल के महीनों में धार्मिक कट्टरपंथी संगठन TLP मुहिम चला रहा है और अहमदिया समुदाय के खिलाफ लोगों को भड़का रहा है. इस संगठन ने अहमदी समुदाय को उनके उपासना स्थल (मस्जिद) में जुमे की नमाज पढ़ने से भी रोकने का सिलसिला शुरू कर रखा है इस महीने ईद से पहले अहमदी समुदाय को पुलिस थानों में तलब किया गया और जबरन यह लिखवाया गया कि वे ईद की नमाज नहीं पढ़ेंगे और ना ही अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार बलि देंगे.

JAP के अनुसार, अहमदियों को खुशाब, मीरपुर खास, लोधरां, भक्कर, राजनपुर, उमरकोट, लरकाना और कराची में ईद की नमाज अदा करने से रोका गया. धार्मिक कट्टरपंथियों ने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर अहमदियों को उनके उपासना स्थल (मस्जिद) के भीतर ही नमाज पढ़ने से रोक दिया. लाहौर के घरी शाही इलाके में स्थित अहमदी समुदाय के सबसे पुराने उपासना स्थल (मस्जिद) को शनिवार को ईद के दिन TLP कार्यकर्ताओं ने घेर लिया और पुलिस से उसे सील करने की मांग की. पुलिस ने उनकी मांग पर कार्रवाई करते हुए उस उपासना स्थल (मस्जिद) को सील कर दिया. JAP ने बताया कि कराची के नाजिमाबाद में TLP कार्यकर्ता, इरफान-उल-हक और उनके बेटे को कुर्बानी के जानवर समेत पुलिस स्टेशन ले गए. अपनी सुरक्षा के डर से उन्होंने कलमा पढ़ा. इसके बाद TLP कार्यकर्ताओं ने उन्हें माला पहनाकर इस्लाम कबूल करवाने का दावा किया.

पंजाब पुलिस ने बताया कि दो अहमदियों को गिरफ्तार किया गया और तीन अन्य के खिलाफ पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298-सी के तहत FIR दर्ज की गई. दरअसल, ये लोग कुर्बानी की कोशिश कर रहे थे. पुलिस के अनुसार, कानून के तहत अहमदियों को इस्लामिक रिवाजों का पालन करने की अनुमति नहीं है. JAP ने कहा कि यह व्यवहार ना सिर्फ भेदभावपूर्ण है, बल्कि असंवैधानिक और गैरकानूनी भी है. संगठन ने कहा, पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है. लेकिन अहमदी समुदाय को नियमित रूप से इस अधिकार से वंचित किया जा रहा है. साथ ही उनके अन्य मूलभूत अधिकार भी छीने जा रहे हैं. JAP के अनुसार, ये घटनाएं पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के खिलाफ भेदभाव के बढ़ते मामलों को दिखा रही हैं. संगठन ने कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन करवाना मानवाधिकार उल्लंघन है और देश में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर गहरी चिंता पैदा करता है. TLP जैसे कट्टरपंथी संगठनों की वजह से अहमदी समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है. इस संगठन से जुड़े लोग खुलेआम अहमदी समुदाय को निशाना बना रहे हैं. कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कोई कानूनी भी नहीं होती है. मई की शुरुआत में पंजाब प्रांत में एक वरिष्ठ अहमदी डॉक्टर की कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 15 मई को इसी प्रांत में अहमदी समुदाय से जुड़े करीब 100 कब्रों को अपवित्र किया गया था. हालांकि अहमदी खुद को मुस्लिम मानते हैं, लेकिन पाकिस्तान की संसद ने 1974 में इस समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया था. एक दशक बाद अहमदी समुदाय को ना सिर्फ खुद को मुस्लिम कहने से रोका गया, बल्कि इस्लाम के प्रतीकों और तौर-तरीकों को अपनाने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया. अहमदी समुदाय पर जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनमें उपासना स्थल (मस्जिद) पर गुंबद या मीनार बनाने पर रोक है. कुरान की आयतें सार्वजनिक रूप से लिखने की मनाही है और इस्लामी प्रतीकों का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.

लाहौर हाईकोर्ट का एक फैसला यह भी कहता है कि 1984 में जारी एक विशेष अध्यादेश से पहले जो अहमदी उपासना स्थल बनाए गए हैं, वे कानूनी हैं और उन्हें ना तो बदला जा सकता है और ना ही गिराया जा सकता है. PAK प्रशासन अक्सर एडवाइजरी जारी करता है और उसमें स्पष्ट करता है कि ईद-उल-अजहा एक पवित्र मुस्लिम त्योहार है. यह त्योहार सिर्फ मुसलमानों के लिए है. दूसरे धर्म को मानने वालों, खासकर अहमदियों को ना तो कानूनी रूप से और ना ही धार्मिक रूप से इस्लामी प्रतीकों और रिवाजों का पालन करने की इजाजत है. गैर मुसलमान होने के बावजूद अगर अवैध तरीके से खुद को मुसलमान की तरह पेश किया जाता है तो इसे इस्लाम में ईशनिंदा माना जाता है. इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सरकार अहमदिया समुदाय से हलफनामा भी मांगती है जिसमें समुदाय से जबरन कहलवाया जाता है कि वे मुस्लिम रीति-रिवाजों का पालन नहीं करेंगे.

पाकिस्तान में अगर कोई अहमदी ईद-उल-उजहा के मौके पर नमाज पढ़ता है, जानवरों की बलि देता है या फिर किसी अन्य इस्लामिक रीति-रिवाज का पालन करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाती है. 5 लाख पाकिस्तानी रुपए का जुर्माना लगाया जाता है. ये नियम 2023 की अधिसूचना पर आधारित है, जिसका मकसद पाकिस्तान दंड संहिता (PPC) की धारा 298-बी और 298-सी का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करना है. अहमदिया समुदाय की धार्मिक अभिव्यक्ति प्रतिबंधित है.

पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय लगातार प्रताड़ित और शोषित होते रहे हैं. इस समुदाय की संपत्ति और इबादत स्थलों पर हमले होते रहे हैं. हाल के सालों में ये घटनाएं बढ़ी हैं. पाकिस्तान में अहमदी मुसलमानों के मरने के बाद उन्हें कब्र तक नहीं नसीब होती. पिछले दिनों पंजाब प्रांत के दस्का में इस्लामिक कट्टरपंथियों के दबाव में अहमदिया मुसलमानों की 80 कब्रों को नष्ट कर दिया गया था. खुद पुलिस ने यह कार्रवाई की थी. अहमदिया मुसलमानों का हज पर जाना भी प्रतिबंधित है. सऊदी अरब भी अहमदिया को मुसलमान नहीं मानता. अगर कोई अहमदिया हज या उमराह के लिए सऊदी अरब पहुंचता है और पकड़ा जाता है तो उसे हिरासत में लिया जा सकता है.

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