केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को राज्यसभा में दिल्ली सेवा बिल (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार संशोधन- विधेयक, 2023) पेश किया. लोकसभा से यह बिल पास हो चुका है. सत्तापक्ष और विपक्ष ने अपने अपने सांसदों को व्हिप जारी कर सदन में उपस्थित रहने के लिए कहा है. दिल्ली में अधिकारों की जंग वाले इस बिल पर आम आदमी पार्टी को 26 विपक्षी पार्टियों (‘INDIA’ गठबंधन) का समर्थन है. इसके अलावा तेलंगाना की सत्ताधारी BRS ने भी अपने सांसदो का बिल का विरोध करने के लिए कहा है. उधर, बसपा इस बिल पर बायकॉट करेगी. जबकि बीजेडी, वाईएसआर और टीडीपी जैसे गैर NDA दलों ने भी मोदी सरकार को बिल पर समर्थन देने का ऐलान किया है.
माना जा रहा है कि दिल्ली सेवा विधेयक पर चर्चा के बाद सोमवार शाम को ही इस पर वोटिंग हो सकती है. इससे पहले लोकसभा में विपक्षी दलों के बायकॉट के बीच ध्वनिमत से पारित हो गया था.
AAP सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा में दिल्ली सर्विस बिल पर बोलते हुए कहा कि ये राजनैतिक धोखा है. उन्होंने कहा कि एक टाइम वो भी था जब भारतीय जनता पार्टी ने खुद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की थी. राघव चड्ढा ने अमित शाह का लोकसभा में दिए बयान पर भी पलटवार किया. शाह ने लोकसभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू के बयान को दोहराते हुए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने का विरोध किया था. इसी बयान का पलटवार करते हुए राघव चड्ढा ने गृहमंत्री को नसीहत दी कि आप नेहरूवादी मत बनिए, आप तो बस आडवाणीवादी बनिए. जिन्होंने कि खुद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाए जाने की मांग उठाई थी. राघव चड्ढा ने कहा कि भाजपा के पुराने नेताओं ने 40 वर्षों तक दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाए जाने की मांग की लेकिन आज के नेताओं ने इस पूरे संघर्ष को मिट्टी में मिलाने का काम किया है.
इस बिल पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, भाजपा का दृष्टिकोण किसी भी तरह से नियंत्रण करने का है. यह बिल पूरी तरह से असंवैधानिक है, यह मौलिक रूप से अलोकतांत्रिक है, और यह दिल्ली के लोगों की क्षेत्रीय आवाज और आकांक्षाओं पर एक प्रत्यक्ष हमला है. यह संघवाद के सभी सिद्धांतों, सिविल सेवा जवाबदेही के सभी मानदंडों और विधानसभा-आधारित लोकतंत्र के सभी मॉडलों का उल्लंघन करता है. बीजेपी दिल्ली में सुपर CM बनाने की कोशिश में जुटी है.
दरअसल, दिल्ली में अधिकारों की जंग को लेकर लंबे समय से केंद्र और केजरीवाल सरकार में ठनी है. दिल्ली में विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 लागू है. 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था.
संशोधन के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे. इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे. इसके मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था.
GNCTD अधिनियम में किए गए संशोधन में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी. इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
– केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के पक्ष में सुनाया फैसला
– केजरीवाल की याचिका पर मई में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने माना दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ) में विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर सेवाओं और प्रशासन से जुड़े सभी अधिकार चुनी हुई सरकार के पास होंगे. हालांकि, पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास ही रहेगा.
– कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ”अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा. चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होगा. उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी.”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र लाया अध्यादेश
– केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदलने के लिए 19 मई को जो अध्यादेश लाया गया था. इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने को कहा गया था. इसमें कहा गया था कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उनपर अनुशासनिक कार्रवाही का जिम्मा इसी प्राधिकरण को दिया गया. अब इस अध्यादेश को कानूनी रूप देने के लिए सदन में विधेयक पेश किया गया है. यह लोकसभा से पास हो गया है. अब राज्यसभा में बिल पर वोटिंग होगी.