कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश संगठन में बड़े बदलाव के संकेत दें दिए थे. इस बीच अब बताया जा रहा है कि जल्द ही कर्नाटक बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है. पार्टी नए प्रदेश के नाम की घोषणा के साथ ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के नाम पर भी महुर लगाएगी. इन दोनों पदो पर कर्नाटक के जातीय समीकरणों और संगठनात्मक अनुभव को को ध्यान में रखकर दोनों पदों के नामों पर फैसला लिया जाएगा.
बताया जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए लिंगायत-वोक्कालिगा और ओबीसी वोटरों को बीजेपी के प्रति लामबंद करना बहुत जरूरी है, ताकि इन समुदायों के मतदाताओं का वर्ग 2019 की तरह फिर से बीजेपी के वोट कर अगामी लोकसभा चुनावों में पार्टी की जीत में बड़ी भूमिका निभाए.
नलिन कतील सौंप चुके इस्तीफा- सूत्र
सूत्रों की मानें तो कर्नाटक विधानसभा में मिली बड़ी हार के बाद नलीन कुमार कतील ने बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा केंद्रीय नेतृत्व को दे दिया है, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें नए अध्यक्ष बनाए जाने तक पद पर बने रहने के लिए कहा है. वैसे भी नलिन कुमार कतील का अध्यक्ष के तौर पर तीन साल का कार्यकाल पिछले साल ही पूरा हो चुका है.
प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए ये नाम आगे
अब बीजेपी लिंगायत, वोक्कालिगा, ओबीसी या दलित चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहती है, जिससे राज्य के सभी समुदायों में अच्छा संदेश जाए. प्रदेश अध्यक्ष एके लिए जिन नामों पर विचार किया है, उनमें बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र, आर अशोक, अरविंद लिंबावली, सुनील कुमार और केंद्रीय मंत्री शोभा करांदलाजे के नाम शामिल हैं. इन नामों में विजयेंद्र लिंगायत, अरविंद लिंबावली एससी, सुनील कुमार ओबीसी से आते हैं. वहीं आर अशोक, सीएन अश्वथ नारायण , शोभा करांदलाजे वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं.
इन्हें बनाया जा सकता है नेता प्रतिपक्ष
बीजेपी सूत्रों के मुताबिक नेता प्रतिपक्ष के लिए पूर्व सीएम बसवराज बोम्मई, वरिष्ठ नेता बसनगौड़ा पाटिल, आर अशोक और अरविंद बेलाड के नाम पर चर्चा हो चुकी है. बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि दोनों पदों के जरिए लिंगायत और वोक्कालिगा वोटरों के बीच सामंजस्य बनाया जा सकता है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि एक तरफ तो लिंगायत वोट बीजेपी से दूर हुआ है तो वहीं वोक्कालिगा वोट जेडीएस से कांग्रेस को शिफ्ट हुआ है, जिसका कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में अच्छा-ख़ासा फ़ायदा मिला है.
जेडीएस से गठबंधन को लेकर फंसा है पेंच?
बताया जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान के सामने प्रदेश अध्यक्ष और नेता विपक्ष चुनने में एक दिक्कत जेडीएस के साथ गठबंधन करने को लेकर भी आ रही है. इसके चलते ही फैसले में देरी हो रही है. बीजेपी सूत्रों का कहना है कि अगर जेडीएस के साथ पार्टी का गठबंधन जल्द होता है तो प्रदेश में पार्टी की कमान किसी ओबीसी नेता को भी दी जा सकती है, क्योंकि जेडीएस का सबसे मज़बूत वोट बैंक वोककलिंगा है.