आज भी जहां किसी टेलीकॉम ऑपरेटर का नेटवर्क नहीं होता वहां BSNL का सिग्नल मिल जाता है. क्योंकि BSNL की कवरेज दूसरी टेलीकॉम कंपनियों के मुकाबले काफी ज्यादा है. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि आज 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी में BSNL शामिल तक नहीं है? क्यों BSNL की स्थिति ऐसी हो चुकी है?
BSNL यानी भारत संचार निगम लिमिटेड, जो एक सरकारी टेलीकॉम कंपनी है. इन दिनों वेंटिलेटर पर पहुंच चुकी इस कंपनी का ऐसा हाल एक दिन में नहीं हुआ है. ना ही इसके दिन शुरू से ऐसे लदे हुए थे. 1 अक्टूबर 2000 को शुरू होने वाली BSNL का कभी टेलीकॉम सेक्टर में एकछत्र राज था. आज सरकार इस कंपनी को बंद होने के बचाने की तमाम कोशिशें कर रही हैं.
बुधवार को कैबिनेट ने BSNL और BBNL (भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड) के मर्जर को हरी झंडी दे दी है. साथ ही केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने BSNL के लिए 1,64,156 करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया है.
राहत पैकेज और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही इस कंपनी का ये हाल कैसे हुआ. इसके लिए हमें दो दशक पहले चलना होगा, जब इसकी शुरुआत हुई थी.
वो भी क्या दिन थे…!
1 अक्टूबर 2000 को BSNL यानी भारत संचार निगम लिमिटेड की शुरुआत हुई थी. जिन लोगों के जेहन में 2000 के दशक की यादें होंगी उन्हें BSNL का स्वर्णिम काल भी याद होगा. तब घरों में आज की तरह हर सदस्य के पास फोन नहीं हुआ करता था.
बल्कि पूरे परिवार या फिर पूरे मोहल्ले में सिर्फ किसी एक के पास मोबाइल फोन होता था. हां, 2000 के आते-आते लैंडलाइन की संख्या जरूर बढ़ गई थी. मगर मोबाइल फोन्स विरले ही नजर आते थे.
इस दौर में BSNL की सिम हासिल करने के लिए कई दिनों तक लाइन में खड़ा होना होता था. किसी तरह से बीएसएनएल की सिम और एक रुपये प्रति मिनट की दर से कॉलिंग के लिए टैरिफ मिलता था.
धीरे-धीरे इस सेक्टर में प्राइवेट कंपनियों की एंट्री होने लगी और BSNL के अच्छे दिन लद गए. कभी प्रॉफिट पर प्रॉफिट बनाने वाली कंपनी धीरे-धीरे घाटे के धंसती चली गई.
फिर आया घाटे का दौर
वित्त वर्ष 2009-10 वह साल जब BSNL के घाटे में जाने की शुरुआत हुई. यह पहला साल था जब BSNL को घाटा हुआ था. बाजार में रिलायंस और एयरटेल जैसे प्राइवेट प्लेयर्स की एंट्री हो चुकी थी.
अब जमाना भी बदल गया था. फोन्स की जगह स्मार्टफोन्स ने लेनी शुरू कर दी थी. वहीं टेलीकॉम कंपनियों की पहुंच मोहल्लों से घर और घर से सदस्यों तक होने लगी थी. इस दौर में फोन पर इंटरनेट और कॉलिंग के लिए रेट कटर्स का चलन था.
मार्केट में एक दो नहीं बल्कि कई प्राइवेट प्लेयर्स एक से बढ़कर एक प्लान्स और FRC के साथ आते थे. कंज्यूमर्स के लिए कई बार रिचार्ज से ज्यादा सस्ता नया सिम लेना होता था.
ऐसे में BSNL लगातार प्रतिद्वंदियों से पिछड़ने लगी. वित्त वर्ष 2009-10 से शुरू हुआ BSNL के घाटे का दौर अब तक नहीं रुका और अब हालत कंपनी को बचाने पर आ पड़ी है.
कंपनी ने इसके बाद अब तक प्रॉफिट का मुंह नहीं देखा. वित्त वर्ष 2019-20 में कंपनी का घाटा 15,500 करोड़ पहुंच गया था. इसके बाद तो ऐसा लगने लगा कि कंपनी का बंद होना तय है. सरकार ने इसे एक बार फिर प्रॉफिटेबल बनाने की कोशिश करना शुरू कर दी है.
साल 2021 में कंपनी को 40 हजार करोड़ रुपये का राहत पैकेज मिला था. इसमें से आधी राशि शॉर्ट टर्म कर्ज को भरने में चली गई. साल 2022 में सरकार ने एक बार BSNL को राहत पैकेज दिया है.
क्यों आई ऐसी नौबत?
सार्वजनिक क्षेत्री की टेलीकॉम कंपनी की ऐसी हालत की कई वजहों से हुई है. इसमें बड़ी भूमिका लालफीताशाही और धीरे-धीरे लिए गए फैसलों की है. साल 2021 से पहले कंपनी का ज्यादातर खर्च कर्मचारियों पर होता था.
लगभग 55 से 60 परसेंट कंपनी का एक्सपेंडेचर इसमें ही जाता था. साल 2016 में जियो के आने के बाद टेलीकॉम इंडस्ट्री में बहुत बड़ा बदलाव हुआ. 4G नेटवर्क का तेजी से विस्तार हुआ और लोगों का फोकस इंटरनेट पर पहुंच गया.
जहां टेलीकॉम इंडस्ट्री में पहले रेट कटर और लो-कॉलिंग चार्ज वाले प्लान्स का बोलबाला था. वहां अब 4G डेटा और OTT बंडल्स आ गए. BSNL जो अब तक 4G सर्विस रोलआउट नहीं कर पाई है, इस दौड़ में हर दिन पिछड़ती चली गई.
ये भी कंपनी के मैनेजमेंट का एक गलत फैसला था. जहां सभी कंपनियों ने 4G पर दांव खेला. BSNL के पास इस सेगमेंट में कुछ भी नहीं था. आज भी कंपनी के पोर्टफोलियो में दूसरी कंपनियों से सस्ते प्लान्स मौजूद हैं, लेकिन 4G नेटवर्क का ना होना लगातार BSNL को पीछे ढकेल रहा है.
जहां दूसरी टेलीकॉम कंपनियां 5G स्पेक्ट्रम रेस में शामिल हैं. वहीं BSNL 4G की शुरुआत नहीं हो पाई है. 4G सर्विस रोलआउट इस साल के अंत तक होना था, लेकिन हाल में आई एक रिपोर्ट में यह समय और बढ़ गया है. रिपोर्ट की मानें BSNL 4G का इंतजार अभी भी 18 से 24 महीने का होगा.