हल्का कोविड संक्रमण भी बिगाड़ सकता है ‘दिल धड़कने’ की रफ्तार? रिसर्च में सामने आईं अहम बातें

रोचक

42 साल के अनूप गुप्ता पेशे से रिक्शा चालक हैं और दिल्ली के आरएमएल अस्पताल के सीसीयू (क्रिटिकल केयर यूनिट) वार्ड में भर्ती हैं. वह यह बताने में असमर्थ हैं कि कैसे दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें यहां लाया गया. डॉक्टरों की जांच के दौरान उन्होंने बताया, ‘यह एक सामान्य दिन था, दिनभर ऑटोरिक्शा चलाने का काम लगभग पूरा हो गया था. तभी मुझे अचानक अपने सीने में दर्द महसूस हुआ, दर्द मेरे कंधे तक बढ़ रहा था, फिर मेरी बांह पर.. लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या था मेरे साथ ऐसा हो रहा है.’

अनूप गुप्ता आगे बताते हैं, ‘मैंने उल्टी करने की कोशिश की, मुझे बेचैनी और चक्कर आ रहे थे. मेरे लोगों ने मुझे यहां भर्ती कराया, मुझे उसके बाद ज्यादा कुछ याद नहीं है. लेकिन अब मैं ठीक महसूस कर रहा हूं.’ कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. तरूण कुमार ने बताया, ’42 साल दिल का दौरा पड़ने की कोई उम्र नहीं है. धूम्रपान और प्रदूषण ऐसे कारक हैं जो इस तरह की स्थिति के लिए जिम्मेदार होते हैं, लेकिन जीवनशैली के कुछ कारक भी हृदय रोग की शुरुआत में बड़ी भूमिका निभाते हैं. मरीज ने कहा था कि उसे हल्का कोविड संक्रमण हुआ था लेकिन उसे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.

भारत के स्वास्थ्य अनुसंधान निकाय, आईसीएमआर ने एक अध्ययन किया है जो अभी जारी है. इसमें अभी भी हार्ट अटैक और कोविड रिकवरी के साथ-साथ दिल के दौरे और टीकाकरण के बीच संबंधों पर अध्ययन जारी है. कई अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों ने अब सुझाव दिया है कि कोविड -19 और दिल के दौरे की घटनाओं में हुई बढ़ोतरी के बीच एक निश्चित रूप से संबंध है, यहां तक कि हल्के कोविड संक्रमण और रिकवरी वाले लोगों में भी हृदय संबंधी बीमारियों के विकसित होने या हार्ट संबंधी समस्याओं के जल्दी शुरू होने की संभावना बढ़ गई है.

क्या कहते हैं अंतरराष्ट्रीय अध्ययन

इटली स्थित एक अध्ययन में कोविड से ठीक होने के बाद दिल के दौरे के जोखिम का पता लगाया गया है. अध्ययन में कहा गया है कि सामान्य आबादी की तुलना में कोविड ​​-19 से ठीक हुए रोगियों में तीव्र रोधगलन (मायोकार्डियल) का जोखिम 93% अधिक था. कोविड19 के दीर्घकालिक हृदय संबंधी परिणामों का मूल्यांकन करने वाले सबसे बड़े अध्ययनों में से एक के अनुसार, यहां तक कि हल्के रोग वाले लोगों को भी संक्रमण के एक साल बाद हृदय संबंधी समस्याओं का अधिक खतरा होता है. यह अध्ययन फरवरी में नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ था.

जब शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से हल्के कोविड वाले लोगों को देखा, तो उन्होंने पाया कि ऐसे लोगों में समकालीन नियंत्रण समूह की तुलना में हृदय संबंधी समस्याएं विकसित होने का जोखिम 39 प्रतिशत अधिक था, या 12 महीनों में प्रति 1,000 लोगों पर 28 अतिरिक्त हृदय संबंधी समस्याएं हुई थीं.

तो कोविड के बाद बढ़े मामले!

आईएमए कोच्चि के सदस्य डॉ. राजीव जयदेवन कहते हैं, ‘यह वाशिंगटन डीसी, सेंट लुइस, अमेरिका से इस विषय पर सामने आए पहले अध्ययनों में से एक है, जो अच्छी तरह से शोधित डेटा बेस पर आधारित एक बड़ा अध्ययन है. इसमें जो लोग ठीक हो गए थे और विशेष रूप से जिन्हें कई संक्रमण हुए थे, उनके परिणाम अधिक गंभीर हो सकते हैं. इसमें बाद में हुई हृदय संबंधी घटनाएं शामिल हैं. इसके बाद कोविड से ठीक हुए लोगों पर कई अध्ययन किए गए और जो लोग कोविड से संक्रमित नहीं हुए, उनमें दोनों समूहों की तुलना में मामूली लेकिन महत्वपूर्ण अंतर देखा गया. दूसरे शब्दों में, यह धूम्रपान के समान है. यह इस बात पर गंभीर चिंता पैदा करता है कि क्या केवल कोविड से संक्रमित होने से ही हृदय संबंधी बीमारियाँ बढ़ जाती हैं.’

डेबेकी हार्ट एंड वैस्कुलर सेंटर, ह्यूस्टन के शोध में यह बात सामने आई है कि कोविड का हृदय पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है. व्यायाम से हृदय की मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह बढ़ने की उम्मीद है. जब ऐसा नहीं होता है, तो हृदय को पर्याप्ता ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है. कोविड के बाद ऐसा हो रहा है. ताइवान के अध्ययन में कहा गया है, ‘हमने पाया कि कोविड ​​-19 से संक्रमित हो चुके लोगों में हृदय संबंधी जटिलताओं का खतरा अधिक है जिसमें हार्ट संबंधी बीमारियां, अतालता, सूजन या थ्रोम्बोम्बोलिक बीमारियां शामिल हैं. वैक्सीनेशन से पहले हुए यूके बायोबैंक पर आधारित एक अध्ययन में कहा गया कि कोविड ​​के बाद दिल की बीमारियों से संबंधित जोखिम बढ़े हैं. यह उन लोगों पर भी लागू होता है जो कोविड से कम प्रभावित हुए.

भारतीय परिदृश्य

आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया, ‘संक्रमण का प्रारंभिक जोखिम उन लोगों के लिए था जिनके शरीर में गंभीर कोविड संक्रमण था. लेकिन अब हल्के कोविड के अलावा लंबे समय तक कोविड प्रभावित रहे मरीजों में भी इस तरह के लक्षण देखे जा सकते हैं. जब भी शरीर में सूजन अधिक होती है, यदि सीआरपी स्तर अधिक होता है, या क्लॉटिंग कारक उच्च होते हैं तो प्लाक (आपके हृदय की नली में कोलेस्ट्रॉल की स्थिति) टूटने की संभावना होती है, जिससे रोधगलन या दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है.’