नवरात्रि में माता की पूजन का विशेष महत्व होता है. नौ दिनों तक भक्त अपनी माता को मनाने के लिए हर तरह की पूजा-पाठ विधिपूर्वक करता है. अपने नौ स्वरूपों वाली माता के आज दूसरे स्वरूप ब्रह्माचारिणी का दिन है. इस दिन माता की विधि विधान से पूजा करने से संयम और त्याग की भावना जागृत होती है जो लक्ष्य प्राप्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. मां ब्रह्माचारिणी का दूसरा नाम तपश्र्चारिणी भी है. गुरुवार को चैत्र नवरात्रि का दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्माचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है.
मां ब्रह्माचारिणी के नाम में ही उनकी शक्तियों की महिमा का वर्णन मिलता है. ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली. अर्थात तप का आचरण करने वाली शक्ति को हम बार-बार नमन करते हैं. माता के इस स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, संयम, सदाचार आदि की वृद्धि होती है. जीवन के कठिन से कठिन समय में भी इंसान अपने पथ से विचलित नहीं होता है.
इस कारण पड़ा यह नाम
मां ब्रह्माचारिणी ने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या के साथ निराहार रहकर और अत्यंत कठिन तप कर महादेव को प्रसन्न कर लिया था. इतनी कठिन तपस्या के कारण ही मां ब्रह्माचारिणी का नाम तपश्र्चारिणी भी पड़ा. दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी को प्रसन्न करने के लिए ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: और या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्माचारिणी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: मंत्र का उच्चारण अवश्य करें.
पूजा का शुभ मुहूर्त
सुबह 06:22 से 07:54 मिनट तक
12:28 से 01:59 मिनट तक
विधि-विधान से करें पूजा
सुबह शुभ मुहूर्त में मां दुर्गा की उपासना करें और मां की पूजा में पीले या सफेद रंग के वस्त्र का उपयोग करें. माता का सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं, इसके बाद रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या कमल के फूल का ही प्रयोग करें. माता को दूध और गुड़ से बनी चीजों का ही भोग लगाएं. इसके साथ ही मन में माता के मंत्र या जयकारे लगाते रहें. पान-सुपारी भेंट करने के बाद प्रदक्षिणा करें. फिर कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें. घी और कपूर से बने दीपक से माता की आरती उतारें और दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें.