वाराणसी की जिला कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग पर फैसला टाल दिया है. अब इस मामले में कोर्ट 11 अक्टूबर को फैसला सुनाएगी. ज्ञानवापी सर्वे के दौरान वजूखाने में शिवलिंग की तरह की आकृति मिली थी जिसके हिंदू पक्ष ने विश्वेश्वर शिवलिंग होने का दावा किया था.
कोर्ट की कार्यवाही से पहले भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया था. इस दौरान कोर्ट में दोनों पक्ष के लोग मौजूद थे. हिंदू पक्ष की ओर से ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में चारों वादी महिलाएं और उनके वकील विष्णु शंकर जैन और हरिशंकर जैन कोर्ट में पहुंचे थे. इसके अलावा सराकरी वकील महेंद्र प्रसाद पांडेय भी जिला जज के न्यायालय में मौजूद थे.
कार्बन डेटिंग नहीं, एक्सपर्ट कमेटी से जांच की मांग- विष्णु जैन
जिला कोर्ट के फैसले से पहले हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा कि हमने कार्बन डेटिंग की मांग शिवलिंग के लिए नहीं की है. हमने मांग की है कि ASI की एक्सपर्ट कमेटी से इसकी जांच की जाए. यह शिवलिंग कितना पुराना है, यह शिवलिंग है या फव्वारा है. शिवलिंग के आसपास अगर कुछ कार्बन के पार्टिकल्स मिले तो उसकी जांच की जा सकती है, लेकिन हमारी मांग सिर्फ एक विशेषज्ञ कमेटी बनाकर इसकी जांच करने की है.
विष्णु जैन ने आजतक से बातचीत में कहा कि अदालत में दलीलें पूरी हो चुकी हैं. आज वाराणसी के जिला जज इस पर अपना फैसला सुनाएंगे जो ऑर्डर उन्होंने रिजर्व कर लिया है. मुस्लिम पक्ष ने अपनी तरफ से एफिडेविट देकर कहा है कि यह फव्वारा है और इसके लिए किसी एक्सपर्ट कमेटी की जांच की जरूरत नहीं है. हिंदू पक्ष के एक वकील जितेंद्र सिंह विशेन और उनकी वादी पत्नी रेखा सिंह के द्वारा कार्बन डेटिंग के सवाल उठाए जाने पर विष्णु जैन ने कहा कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं कि कौन-क्या कह रहा है. वह सिर्फ एक वकील की हैसियत से 4 महिला वादियों की तरफ से इस मामले की बहस कर रहे हैं. बाकी कौन विरोध कर रहा है, कौन नहीं. इसकी जानकारी उन्हें नहीं है.
कैसे पता चलेगी कार्बन डेटिंग से आयु?
रिटायर्ड साइंटिस्ट डॉ. सीएम नौटियाल ने बताया कि किसी भी चीज की कार्बन डेटिंग से उसकी आयु निकाली जा सकती है, बशर्ते उसमें कार्बन के पार्टिकल्स मौजूद हों. उन्होंने कहा कि अगर हम किसी लकड़ी के दरवाजे की कार्बन डेटिंग करेंगे तो हम यह पता लगा सकते हैं कि वह लकड़ी जिस पेड़ की है वो कब जिंदा था. हम यह नहीं पता लगा सकते हैं कि इस लकड़ी से दरवाजा कब बनाया.
पत्थर में फोटोसिंथेसिस नहीं होता, लेकिन जो सेडिमेंट्री रॉक्स में वनस्पतियों का अंश होता है और वनस्पतियों में फोटोसिंथेसिस होती है इसलिए सेडिमेंट्री रॉक्स से कार्बन डेटिंग कर उस पत्थर की आयु पता लगाई जा सकती है. इसलिए यह पहले पता लगाना होगा कि वह शिवलिंग किस पत्थर का बना है. अगर हम उस पत्थर की कार्बन डेटिंग कर भी लेते हैं तो हमें उस पत्थर के बनने की आयु पता चलेगी लेकिन उस पत्थर से शिवलिंग कब बना यह पता लगाना मुश्किल है.
महिलाओं की याचिका पर हो रही है सुनवाई
वाराणसी जिला कोर्ट में यह याचिका उन्हीं महिलाओं की ओर से दाखिल की, जिन्होंने कोर्ट से श्रृंगार गौरी की पूजा की इजाजत मांगने संबंधी याचिका दाखिल की थी. महिलाओं की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन ने जिला जज की कोर्ट में ये याचिका दाखिल की. इससे पहले जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट ने 12 सितंबर को बड़ा फैसला सुनाते हुए श्रृंगार गौरी में पूजा के अधिकार की मांग को लेकर दायर याचिका को सुनवाई के योग्य माना था.
हिंदू पक्ष की ओर से ज्ञानवापी परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर नियमित पूजा अर्चना करने की अनुमति दिए जाने की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिला कोर्ट को यह तय करना था कि मामला सुनने योग्य है या नहीं. सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में पोषणीय नहीं होने की दलील देते हुए इस केस को खारिज करने की मांग की थी. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 07 नियम 11 के तहत इस मामले में सुनवाई हो सकती है.
5 महिलाओं ने डाली थी याचिका
अगस्त 2021 में 5 महिलाओं ने श्रृंगार गौरी में पूजन और विग्रहों की सुरक्षा को लेकर याचिका डाली थी. इस पर सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर ज्ञानवापी का सर्वे कराने का आदेश दिया था. हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि सर्वे के दौरान शिवलिंग मिला. जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि ये एक फव्वारा है. इसके बाद हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी. सेशन कोर्ट ने इसे सील करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुई थी जिला कोर्ट में सुनवाई
SC ने केस जिला जज को ट्रांसफर कर इस वाद की पोषणीयता पर नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया था. मुस्लिम पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि ये प्रावधान के अनुसार और उपासना स्थल कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं हो सकती है. उपासना स्थल कानून 1991 के तहत धार्मिक स्थलों की 1947 के बाद की स्थिति बरकरार रखने का प्रावधान है.