75वें गणतंत्र दिवस पर कर्तव्य पथ पर छत्तीसगढ़ की झांकी ने लोगों का मन मोह लिया. बस्तर के 600 साल पुरानी मुरिया दरबार को झांकी के रूप में पूरे देश ने देखा. खास बात है कि आज भी बस्तर दशहरा में मुरिया दरबार आयोजित होता है. जिसमें क्षेत्र के कई मुद्दों को हल किया जाता है.
छत्तीसगढ़ की झांकी बस्तर की आदिम जन संसद मुरिया दरबार पर आधारित है. जगदलपुर के बस्तर दशहरे की परंपरा में शामिल मुरिया दरबार और बड़े डोंगर के लिमऊ राजा को केंद्रीय विषय बनाया गया है. झांकी की साज-सज्जा में बस्तर के बेलमेटल और टेराकोटा शिल्प की खूबसूरती को प्रदर्शित किया गया है.
मुरिया दरबार में राजा अपनी शाही वेशभूषा में नहीं पहुंचते थे. बल्कि साधारण कपड़े पहनकर वे लोगों के बीच बैठते थे. ताकि बिना झिझक के लोग अपनी बातें उनसे कह सके.इन बातों को सुनकर राजा समस्याओं का निराकरण भी मौके पर ही करते थे. यही मुरिया दरबार का मुख्य उद्देश्य है.
मुरिया दरबार में आदिवासियों की मूलभूत समस्याओं का तत्काल निराकरण होता है. आज के समय आयोजित होने वाले मुरिया दरबार में राजा के साथ ही मुख्यमंत्री और जिला कलेक्टर मौजूद रहते हैं. राज दरबार की तरह ही समस्याओं की घोषणा की जाती है जिसके बाद उस पर चर्चा के बाद उसका निपटारा किया जाता है.
मुरिया दरबार पहली बार 8 मार्च 1876 को आयोजित की गई थी. इस मुरिया दरबार में सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेकजार्ज ने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था.बस्तर में बसने वाले जाति और जनजातीय परिवारों हल्बा, भतरा, धुरवा, गदबा, दोरला, गोंड, मुरिया, राजा मुरिया, घोटुल मुरिया, झोरिया मुरिया जाति के पहचान के लिए पहले मुरिया शब्द ही इस्तेमाल होता था. इस वजह से इसका नाम मुरिया दरबार पड़ा.
कर्तव्य पथ पर, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत करती, बस्तर के मुरिया दरबार की झांकी बनी आकर्षण का केंद्र.
छत्तीसगढ़ की झांकी में इस वर्ष बस्तर की आदिम जनसंसद “मुरिया दरबार” को प्रदर्शित किया गया है। @PMOIndia @vishnudsai pic.twitter.com/0rFMClbQQM
— CMO Chhattisgarh (@ChhattisgarhCMO) January 26, 2024