प्लीज सर जी आप मत जाइए.. दिल्ली पुलिस के SHO की विदाई पर जब रो पड़े लोग..Video

शख्स को माला पहनाने की होड़ में लोग और उस शख्स के साथ सड़कों पर चलता लोगों को हुजूम. जिस किसी ने भी ये तस्वीर देखी उसे लगा कि ये कोई बड़ा नेता ही होगा जिसके स्वागत में इतने सार लोग जमा हो गए हैं. लेकिन जब उन्हें पता चला कि ये फूल मालाएं किसी नेता के लिए नहीं बल्कि एक पुलिस अधिकारी के लिए हैं तो वो भी थोड़ी देर के लिए आशचर्य में पड़ गए. दिल्ली के सब्जी मंडी थाने के SHO इंस्पेक्टर राम मनोहर मिश्रा थे इतने खास. जब लोगों को पता चला कि अब उनका यहां से ट्रांसफर हो गया है और अब वो इस थाने से जा रहे हैं तो खुदको भावुक होने से नहीं रोक पाए. पुलिस अधिकारी को एक सामान्य सी धारना ये है कि उससे बात कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती. यही वजह है कि एक आम इंसान पुलिस अधिकारी या पुलिस से दूरी बनाकर रखना चाहता है लेकिन इंस्पेक्टर राम मनोहर मिश्रा ने लंबे समय से चली आ रही इस धारना के उलट काम किया. उन्होंने ना सिर्फ थाने में आम इंसान की पहुंच बढ़ाई बल्कि थाने के दरवाजों को चौबीसों घंटे आम लोगों के लिए खोल भी दिया. यानी अब कोई भी अपनी शिकायत या अपनी बात लेकर किसी भी वक्त उन तक पहुंच सकता था. यही वजह थी कि लोग उनसे ज्यादा जुड़ाव महसूस करते थे.
दिल्ली के सब्जी मंडी थाने के SHO राम मनोहर मिश्रा का ट्रांसफर हुआ.
उनके विदाई समारोह में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे. इस दौरान कई लोग भावुक हो गए और SHO मनोहर मिश्रा के गले लगकर रोने लगे..यह दृश्य एक पुलिस वाले के प्रति बहुत कम ही देखने को मिलता है जरूर मिश्रा जी ने… pic.twitter.com/K9spNIVp4v
— Aditya Kamal Pandey(आदित्य पाण्डेय) (@AadiJournalist) May 14, 2025
अपने दो वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने ऐसा संबंध क्षेत्रवासियों से बनाया कि जब उनका ट्रांसफर हुआ, तो विदाई के मौके पर जनसैलाब उमड़ पड़ा. यह कोई सामान्य विदाई नहीं थी, यह लोगों के दिलों की आवाज थी. इंस्पेक्टर मिश्रा की सब्जी मंडी थाने से विदाई के समय का नजारा अपनेआप में अनोखा था. उन्हें विदा करने मानों पूरा इलाका ही उमड़ पड़ा हो. क्या बुजुर्ग क्या युवा और क्या ही महिलाएं. हर कोई उनसे मिलकर उन्हें बधाई देने के साथ-साथ उन्हें गले लगाकर भावुक होने से खुदको नहीं रोक सका. उनके कार्यकाल में थाने के दरवाजे हर फरियादी के लिए 24 घंटे खुले रहते थे. वे सिर्फ एक अधिकारी नहीं थे, वे हर वर्ग और धर्म के लोगों के अपने बन गए थे. सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में उनकी भागीदारी ने उन्हें क्षेत्र का अभिन्न अंग बना दिया.