छत्तीसगढ़ : गरियाबंद जिले के देवभोग सिंचाई अनुविभाग में 8 साल पहले बनाई गई जलप्लावन योजना फेल साबित हुई है. मोखागुड़ा में 10 से ज्यादा किसानों ने इस बार लगभग एक किमी लंबी नहर में मसूर और मूंग की फसल ली है. नाम न छापने की शर्त पर किसानों ने बताया कि उनके खेतो में इस बार नहर से सिंचाई का पानी नहीं मिला. खरीफ में प्यासे खेतों के कारण धान की फसल चौपट हो गई है. किसानों ने अपनी लागत निकालने के लिए अपने खेतो से होकर गए नहरों के भीतर ही जुताई की, फिर कचरा साफ किया, इसके बाद मसूर और मूंग की फसल लगा दी. अभी नहरों में दलहन के पौधों की हरियाली दिखाई दे रही है
योजना के तहत अमलीपदर तहसील के 5 और देवभोग तहसील के 22 गांव मिलाकर कुल 27 गांव (3186 हेक्टेयर) में खरीफ सीजन में सिंचाई के लिए 29 किमी मुख्य नहर के अलवा 29 किमी लंबी 14 नहरों का जाल बिछाया गया था. लेकिन निर्माण पूरा होने के 8 साल बाद सिंचाई का पानी मुख्य नहर में महज 5 से 10 किमी के दायरे में सिमट कर रह गया.
1977 में अकाल के वक्त राहत कार्य के तहत तेल नदी के एनासर और कोदोबेड़ा घाट में नहरों की खुदाई हुई थी. लेकिन बाद में इन दोनों नदियों के पानी को सिंचाई सुविधा में बदलने जलप्लावन योजना लागू करने की योजना बनाई गई.कोदोबेड़ा घाट पर 1990 में जलप्लावन की नींव रखी गई. 4 साल में अविभाजित मध्यप्रदेश में पहली जलप्लावन योजना तैयार हो गई. बारहों मास तेज बहाव वाले आंध्र, पंजाब की नदियों में यह योजना असफल थी. अल्प वर्षा में नदी का बहाव कम हो जाता था. रूपांकित 12 गांव की बजाए सिंचाई का पानी केवल 4 गांव तक पंहुचा. छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आने के बाद इस योजना को एक्सपर्ट्स ने फेल मान लिया था.
योजना की रूपरेखा तैयार करने वाले अफसरों को पता था कि यहां पानी नही मिलेगा. इसलिए नदी में जलप्लावन के लिए बनाए गए मुख्य स्ट्रक्चर से करीब 500 मीटर आगे नदी के बहाव को रोकने के लिए एक व्यापवर्तन योजना लागू किया. 5 करोड़ की लागत से बनने जा रही इस योजना का काम 2013 में शुरू हुआ, वॉल के लिए नीव खड़ी की जा रही थी, पर नदी में ओड़िशा सीमा विवाद के चलते काम रोक दिया गया. सपोर्टिंग योजना आज भी अधर में हैं. पूरी तरह फेल हो चुकी इस योजना के नहरों में लाइनिंग कार्य के लिए रुपये मांगे जा रहे हैं. करीब 3 करोड़ का प्रपोजल भी भेजा गया है. लेकिन इसकी मंजूरी देने से पहले योजना की सफलता की तकनीकी जांच जरूरी है.