जमानत मिलने के बाद भी नहीं हुई रिहाई, सुप्रीम कोर्ट बोला- यह न्याय का उपहास

उत्तर प्रदेश में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए बनाए गए कानून के तहत गिरफ्तार एक आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद रिहा न किए जाने पर शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कड़ी नाराजगी जाहिर की. अदालत ने इसे ‘न्याय का उपहास’ करार देते हुए जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए. जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए और गाजियाबाद जिला जेल के अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से 25 जून को अदालत में पेश होने का आदेश दिया है मामले को लेकर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 29 अप्रैल का उसका आदेश पूरी तरह से स्पष्ट है आदेश में साफ कहा गया है कि अपीलकर्ता व मामले में आरोपी आफताब को गाजियाबाद के एक पुलिस स्टेशन में 3 जनवरी, 2024 को दर्ज की गई प्राथमिकी में संबंधित अदालत द्वारा निर्धारित शर्तों पर मुकदमा लंबित रहने के दौरान जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को आरोपी आफताब को जमानत दी थी. इसके बाद गाजियाबाद की जिला अदालत ने 27 मई को रिहाई का आदेश भी जारी कर दिया, लेकिन जेल प्रशासन ने यह कहकर रिहाई से इनकार कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में UP धर्मांतरण विरोधी कानून (2021) की धारा 5(1) का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है. इसके खिलाफ आफताब ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर बताया कि वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद रिहा नहीं हो सका, क्योंकि जेल प्रशासन उप-धारा के उल्लेख को लेकर तकनीकी आपत्ति जता रहा है.
पीठ ने स्पष्ट किया कि 29 अप्रैल का आदेश एकदम साफ है, जिसमें कहा गया है कि आरोपी को सभी तय शर्तों के आधार पर रिहा किया जाए. अदालत ने यह भी कहा कि यह गंभीर जांच का विषय है कि केवल उप-धारा का उल्लेख न होने के कारण किसी व्यक्ति को रिहा नहीं किया गया और वह अब तक जेल में है. यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है अदालत ने साफ किया कि कोई भी व्यक्ति इस अदालत को हल्के में न ले. अब मामले की अगली सुनवाई कल 25 जून को होगी, जिसमें यूपी के जेल महानिदेशक और गाजियाबाद के जेल अधीक्षक को अपना पक्ष रखना होगा.