Govardhan Puja 2022: ब्रज में खास है गोवर्धन पूजा, पढ़िए अर्चना का दिन और इसकी पौराणिक कहानी

धर्म

पर्वतराज गोवर्धन यानी गिरिराजजी की भव्यता विशालता आस्था को आंकने के लिए दुनिया भर के पैमाने यहां हाथ जोड़े नजर आते हैं। सात कोस में विराजमान इस देवता की दिव्यता भी अकल्पनीय है। इसी वजह से गिरिराजजी को सब देवों का देव भी कहा जाता है। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है।

सूर्य ग्रहण के कारण दिवाली 24 अक्टूबर को मनेगी
इस बार अमावस्या पर सूर्य ग्रहण के कारण दिवाली एक दिन पहले 24 अक्टूबर को है। ऐसे में सूर्यग्रहण में गोवर्धन पूजा नहीं होगी। गोवर्धन की पूजा 26 अक्टूबर को होगी। गोवर्धन महाराज को मौसमी सब्जियों, मिष्ठान और पकवानों के मिश्रण से तैयार अन्नकूट का भोग लगाया जाएगा। अन्नकूट के दिन सर्वप्रथम गिरिराज प्रभु का दुग्धाभिषेक होगा। सुबह करीब चार बजे गिरिराज शिलाओं पर दूध की धार शुरू होती है,जो देर रात तक रुकने का नाम नहीं लेती। दिवाली के साथ ही गोवर्धन पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है। भागवताचार्य गोपाल प्रसाद उपाध्याय ने बताया कि सूर्यग्रहण के दिन गोवर्धन पूजा नहीं हो सकती।

पुष्टिमार्ग में अन्नकूट दो नवंबर को
पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के मंदिरों में दो नवंबर को अन्नकूट महोत्सव मनाया जाएगा। इसके पीछे कारण यह है कि अन्नकूट का प्रसाद बनाने में कई दिन लगते हैं। विभिन्न प्रकार के व्यंजन प्रभु को बनाए जाते हैं। अगर पहले बनाएंगे तो सूर्य ग्रहण में प्रसाद खराब हो जाएगा। इसलिए दो नवंबर को अक्षय नवमी पर अन्नकूट महोत्सव और गोवर्धन महाराज का पूजन होगा। इस परंपरा में मथुरा का द्वारकाधीश मंदिर और जतीपुरा का मुखारविंद मंदिर शामिल है।

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का ये है पौराणिक महत्व
गोवर्धन पर्वत की शिलाओं में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के संरक्षित चिन्ह रहस्यमयी दिव्यता की गवाही देती हैं। प्रभु की 21 किमी की परिक्रमा कर मनोकामना पूरी होने के लिए लोग आज भी झोली फैलाकर पैदल, दंडवती, दुग्धधार और धूप परिक्रमा लगाते हैं। गिरिराज के धाम में रात-दिन लोग परिक्रमा करते हैं।

श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप माना है गोवर्धन पर्वत

धार्मिक इतिहास का गुणगान करता पर्वत श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है। पर्वतराज की नगरी के तीन प्रमुख मंदिर दानघाटी, मुकुट मुखारविंद और जतीपुरा मुखारविंद अद्वितीय सौंदर्य के साथ गिरिराजजी का यशोगान कर रहे हैं। आन्योर के समीप गिरिराज शिलाओं की गोद में बने लुकलुक दाऊजी मंदिर पर रहस्यमयी दिव्य चिन्ह बने हैं, जो कि राधाकृष्ण की उपस्थिति का अहसास करा रहे हैं।

बालपन में भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज महाराज को ब्रज का देवता बताते हुए इंद्र की पूजा छुड़वा दी। इससे देवों के राजा इंद्र ने कुपित होकर मेघ मालाओं को ब्रज बहाने का आदेश दे दिया था। सात दिन और सात रात तक मूसलाधार बरसात हुई, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गिरिराज पर्वत को अपनी उंगली पर धारण करके ब्रज को डूबने से बचा लिया। इंद्र कान्हा के शरणागत हो गये।

इंद्र अपने साथ लेकर आए थे गोकर्ण घोड़ा, सुरभि गाय और ऐरावत हाथी

उस समय इंद्र अपने साथ सुरभि गाय और ऐरावत हाथी और गोकर्ण घोड़ा साथ लाए। कान्हा माधुर्य रूप और तिरछी चितवन, मन मोहक मुस्कान देखकर गाय का मातृत्व जाग उठा, उसके थनों से दूध की धार निकलने लगी। दूध की धार के चिन्ह आज भी गिरिराज पर्वत ने सहेज कर रखे है। गोकर्ण घोड़ा और ऐरावत हाथी और सुरभि गाय के उतरने पर उनके पैरों के निशान शिलाओं में दिखाई पड़ते हैं। बाल सखाओं के साथ माखन मिश्री खाकर उंगलियों के बने निशान दर्शनीय बने हुये हैं।

दाऊजी मंदिर में विराजमान गिरिराज शिला में शेर की आकृति दिखाई देती है। मान्यता के अनुसार, शेर के स्वरूप में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ विराजमान हैं।