सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की एक बेंच कर्नाटक हाईकोर्ट एक फैसले के खिलाफ अहम मामले की सुनवाई कर रही है. ये मामला स्कूल यूनिफॉर्म के साथ मुस्लिम लड़कियों द्वारा सिर पर पहने जाने वाले एक ‘स्कार्फ पर पाबंदी’ (आम शब्दों में हिजाब बैन) से जुड़ा है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच कर रही है. तो वहीं अलग-अलग याचिका दाखिल करने वाले वकील अपनी दलीलें पेश कर रहे हैं. इन्हीं वकीलों में से एक देवदत्त कामत ने जब हिजाब को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का हिस्सा बताया, तो बेंच में शामिल जस्टिस गुप्ता ने पूछा-अगर कोई सलवार कमीज पहनना चाहता है या लड़के धोती पहनना चाहते हैं, तो क्या इसकी भी अनुमति दे दी जाए? जानें क्या हुआ कोर्ट में, जज के सवाल और वकील की दलील क्या-क्या रहीं…
देवदत्त कामत ने कोर्ट के सामने बुनियादी अधिकार का सवाल रखते हुए कहा- संविधान का अनुच्छेद 19 (1) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. ये अधिकार क्या पहनना है, इसे भी सुनिश्चित करता है. इस पर जस्टिस गुप्ता ने कामत से पूछा कि अभी आप Right to Dress की बात कर रहे हैं, तो बाद में आप Right to Undress की बात भी करेंगे, ये जटिल सवाल है. अदालत ने आगे पूछा कि अगर कोई सलवार कमीज पहनना चाहता है, या लड़के धोती पहनना चाहते हैं, तो क्या इसकी अनुमति दे दी जाएगी.
सरकार अनुच्छेद-19 के अधिकार देने में विफल रही ?
इससे पहले कामत ने कोर्ट में दलील दी कि यहां सवाल ये है कि क्या सरकार अनुच्छेद-19, 25 और 26 के तहत छात्रों को उनके उपयुक्त अधिकार देने में विफल रही है? हम यहां यूनिफॉर्म को चुनौती नहीं दे रहे और ना ही ये कह रहे कि कोई यूनिफॉर्म की जगह जींस या कोई अन्य कपड़ा पहन ले? मेरी दलील ये है कि अगर कोई छात्र स्कूल की यूनिफॉर्म पहनता है और तो क्या सरकार उन्हें अपने सिर पर स्कॉर्फ बांधने से रोक सकती है? यहां ऐसे हिजाब या जिलबाब की बात नहीं हो रही है जो सिर से पांव तक उन्हें कवर करता हो?
कामत ने आगे अमेरिका, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका के उदाहरण दिए. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन की संसद के उच्च सदन में स्कूल में लड़कियों के सलवार-कमीज और स्कार्फ पहनने का मसला सामने आया था, जहां इसकी अनुमति दे दी गई, लेकिन जिलबाब की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि वो सिर से पांच तक व्यक्ति को कवर करता है.
इस पर कोर्ट ने कहा-यहां बहस इस बात पर हो रही है कि क्या लड़कियों को ‘युक्तिसंगत छूट’ दी जा सकती है या नहीं. इस पर कामत ने कहा कि ये एक ‘बड़ा कानूनी मसला’ है इसलिए इसे 5 जजों वाली संवैधानिक बेंच पर ट्रांसफर कर देना चाहिए?
आप इंडिया लौट आइए
वकील देवदत्त कामत कोर्ट में जब अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों की अदालतों के फैसलों का उदाहरण दे रहे थे, तब जस्टिस गुप्ता ने उनसे हल्के अंदाज में कहा-आप इंडिया लौट आइए. वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने सवाल किया-क्या आपने वहां के संविधान को पढ़ा है? वहां कई विश्वास हैं. इस पर कामत ने कहा कि हां इस बारे में मैंने पढ़ा हैं. कुछ संबंधित दस्तवेज हैं मेरे पास. वहीं जस्टिस गुप्ता ने कहा- हर देश का अपना संविधान, कानून और नियम होते हैं. हम अमेरिका के संविधान का पालन नहीं कर सकते. इस पर कामत ने कहा-अच्छी चीजों का हमेशा स्वागत होना चाहिए.