दुनिया में अब तक तुर्की को लोहे का उत्पादन शुरू करने वाले सबसे पहले क्षेत्र के रूप में माना जाता रहा है, लेकिन हाल ही में हुए एक खोज ने लौह युग की शुरुआत को लेकर नई बहस शुरू कर दी है। पुरातत्वविदों को भारत के तमिलनाडु में छह जगहों पर लोहे की वस्तुएं मिली हैं, जो 2953-3345 ईसा पूर्व तक पुरानी हैं। हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि दक्षिणी राज्य दुनिया के उन पहले स्थानों में से एक था, जहां लोहे को गलाकर इस्तेमाल किया जाता था। शुरुआत में इंसानों ने जब लोहे का इस्तेमाल शुरू किया तो यह दो प्रकार का था। एक उल्कापिंड से और दूसरा गलाने वाला लोहा था। गलाने वाला लोहा अयस्कों से निकाला जाता था। बड़े पैमाने पर उत्पादन के साथ इसे लौह की शुरुआत के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उल्कापिंड वाला लोग धरती पर गिरे उल्कापिंडों से प्राप्त होता है। तमिलनाडु के राज्य पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 5300 साल पहले क्षेत्र में रहने वाले लोग लोहे को गलाने के बारे में जानते थे और उसका इस्तेमाल करते थे। इसके लिए 1200 से 1400 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। लोहे को निकालने, गलाने, गढ़ने और उसे आकार देने की प्रक्रिया भारतीय उपमहाद्वीप में शुरू हुई होगी। पुरातत्वविदों ने तमिलनाडु के आदिच्चनल्लूर, शिवगलाई, मयिलाडुमपराई, किलनामंडी, मंगडू और थेलुंगनून स्थलों से नमनू जमा किए। शिवगलाई से प्राप्त चारकोल और बर्तनों के टुकड़े (सिरेमिक सामग्री के) का इतिहास 2953 से 3345 ईसा पूर्व का है।