सुप्रीम कोर्ट में 2 जजों की बेंच ने गुरुवार को कर्नाटक के चर्चित हिजाब विवाद पर अलग अलग फैसला सुनाया. बेंच में शामिल दोनों जजों जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया इस मुद्दे पर एकमत नहीं दिखे. जहां जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब बैन के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए हिजाब पर प्रतिबंध को सही माना. वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के बैन जारी रखने के आदेश को रद्द कर दिया. ऐसे में अब इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा जाएगा, वे इसे बड़ी बेंच को सौंपेंगे.
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई के दौरान हिजाब विवाद पर इन सवालों के जवाब खोजेगी-
– क्या हिजाब इस्लाम का अंदरूनी हिस्सा है?
– अनुच्छेद 25 की सीमा क्या है?
– व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की सीमा क्या है?
हिजाब पर विवाद रहेगा जारी
अभी हाई कोर्ट का फैसला लागू रहेगा. यानी कर्नाटक में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन लागू रहेगा. क्योंकि एक जज ने याचिका को खारिज किया है और दूसरे ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. अब हाई कोर्ट का फैसला तब तक जारी रहेगा जब तक किसी बड़े बेंच का फैसला नहीं आ जाता है.
क्या है पूरा विवाद?
कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद दिसंबर 2021-जनवरी 2022 में शुरू हुआ था. कर्नाटक के उडुपी में एक सरकारी कॉलेज में 6 छात्राओं ने हिजाब पहनकर कॉलेज में एंट्री ली थी. कॉलेज प्रशासन ने छात्राओं को हिजाब पहनने के लिए मना किया था, लेकिन वे फिर भी पहनकर आ गई थीं. इसके बाद लड़कियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कॉलेज प्रशासन के खिलाफ विरोध दर्ज किया था. इसके बाद कर्नाटक से लेकर पूरे देशभर में हिजाब को लेकर विवाद शुरू हुआ. स्कूलों में हिजाब के समर्थन और विरोध में प्रदर्शन किए गए.
हाईकोर्ट का क्या था फैसला?
इसी बीच 5 फरवरी को कर्नाटक सरकार ने स्कूल- कॉलेज में यूनिफॉर्म को अनिवार्य करने का फैसला किया था. इसके बाद कुछ छात्राओं ने हाईकोर्ट का रुख किया. छात्राओं ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर हिजाब पर लगे बैन को हटाने की मांग की थी. लेकिन हाईकोर्ट ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन के फैसले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.
हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने 10 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद 22 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.