जया एकादशी कल, भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए जरूर पढ़ें व्रत कथा…

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माघ महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस साल जया एकादशी 20 फरवरी को है। जया एकादशी बहुत ही पुण्यदायी एकादशी मानी जाती है। इस एकादशी का व्रत करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को भूत-प्रेत, पिशाच से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता के अनुसार जो कोई भक्त जया एकादशी व्रत का पालन सच्ची श्रद्धा के साथ करता है उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने से दोषों से मुक्ति मिलती है। साथ ही इस दिन पूजा के दौरान जया एकादशी व्रत की कथा पढ़ने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार जब धर्मराज युधिष्ठिर, भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि माघ मास की एकादशी का क्या महात्म्य है, तो भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि इसका नाम जया एकादशी है। इस एकादशी पर व्रत करने से मनुष्य को भूत-पिशाच की योनि का भय नहीं रह जाता है। इसी विषय में कथा सुनाते हुए भगवान कृष्ण कहते हैं कि एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवतागण, सिद्ध संत और दिव्य पुरुष उपस्थित थे। इस उत्सव कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे एवं गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं।

उसी समय नृत्यांगना पुष्पवती सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर मोहित हो गयी। अपने प्रबल आकर्षण के कारण वह सभा की मर्यादा को भूल गई और इस प्रकार नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। माल्यवान भी उसकी ओर आकर्षित हुए बिना न रह सका, परिणाम वश वह अपनी सुध-बुध खो बैठा और सुरताल भूल गया, जिसके कारण वह गायन की मर्यादा से भटक गया। इन दोनों की इस अपकर्म से देवराज इन्द्र को क्रोध आ गया। उन्होंने दोनों को श्राप दिया कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हो। श्राप के प्रभाव से दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर अत्यंत कष्ट भोगते हुए रहने लगे।

एक दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे, जिस के चलते उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई। संयोग से उस दिन माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। इस प्रकार से अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हो गई, जिसके बाद वे पहले से भी अधिक सौंदर्यवान हुए और पुन: स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त हुआ। देवराज इंद्र दोनों को देखकर आश्चर्यचकित हो गए तब उन्होंने पूछा कि वे श्राप मुक्ति कैसे हुए। जिस पर गंधर्व ने बताया कि यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है।