पूरब की लाली का असर पश्चिम पर कुछ इस तरह से पड़ा कि स्विट्जरलैंड से भारत आए उर्स स्ट्रोबल बन गए आशुतोष और आजीवन धारण कर लिया ब्रह्माचार्य जीवन. कहानी यहीं पर खत्म नहीं होती, भारत के वेद पुराण और धर्म ग्रंथों से प्रभावित होकर उन्होंने अपना जीवन इसी के प्रचार प्रसार में समर्पित कर दिया और आज उत्तराखंड के कौसानी में उनका आश्रम है, जहां पर वे आने वाली पीढ़ी को वेद पुराणों का पाठ पढ़ाते हुए उन्हें वैदिक कल्चर के जरिए शिक्षा दे रहे हैं. आज इनके आश्रम में जो बच्चे शिक्षा ले रहे हैं, वे शैक्षणिक बोधता के साथ साथ पौराणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ज्ञान भी अर्जित कर रहे हैं. इसके साथ ही आचार्य आशुतोष के साथ उसके कई प्रशिक्षक भी जुड़े हैं जो उन्हीं से शिक्षा लेकर आगे बच्चों तक पहुंचा रहे हैं.
वैदिक काल का गुरुकुल लगता है आश्रम
अल्मोड़ा से 52 किलोमीटर आगे अनामय वैदिक आश्रम कौसानी के पास जब आप इस आश्रम में कदम रखते हैं, तब ऐसा लगता है मानो आप किसी ऐसे गुरुकुल में हैं जो वैदिक काल का है. यहां पर आपको चारों दिशाओं से चार वेदों के पाठ सुनाई पड़ते हैं. जिससे आपके कदम थिरक उठेंगे. यह आश्रम किसी गुरुकुल से कम नहीं है क्योंकि यहां अनुशासन, नियम, संस्कार, संस्कृति, स्वाध्याय ही इसके परिचायक हैं. यहां के बच्चे वेद पुराण और धर्म ग्रंथों का नियमित रूप से पाठ करते हैं. और इसलिए इस आश्रम में माता पिता अपने बच्चों को दूर दूर से भेजते हैं.
1975 में जिंदगी में आया बड़ा बदलाव
पहाड़ियों के बीच स्थित आश्रम में अपने कक्ष के बाहर एक हल्की मुस्कुराहट के साथ 69 वर्षीय स्वामी आशुतोष बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही मेडिटेशन में बहुत रुचि थी. स्कूल में मेडिटेशन में दौरान योग भी किया करते थे. लेकिन सन 1975 उनके जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव बनकर आया. दरअसल भावातीत योग के प्रणेता महर्षि महेश योगी ने योग शिविर का आयोजन किया था जो स्विट्जरलैंड में था. आशुतोष (उस समय ऊष्ठ स्ट्रॉबल) को योग अभ्यास के रुचि थी इसलिए वे भी इस शिविर में शामिल होने के लिए चले गए. आशुतोष बताते हैं कि यहीं से ही जितना उन्होंने भारतीय संस्कृति को जानने की कोशिश की उतनी ही उनकी लालसा बढ़ती गई.
1997 में आए भारत
वे बड़े ही करीब से महर्षि महेश योगी की कही बातों का पालन करने लगे. इसके बाद उन्होंने महर्षि योगी से आग्रह किया कि वे उन्हें अपना शिष्य बना लें. अशुतोष ने धीरे धीरे गीता, वेद पुराण और अन्य ग्रंथों का अध्ययन शुरू किया. उसी वक्त उन्होंने तय कर लिया था कि वे आजीवन ब्रम्हाचार्य का व्रत रखेंगे. बस फिर क्या था स्विट्जरलैंड से केमिस्ट की नौकरी और पढ़ाई छोड़कर उन्होंने भारत आने का मन बना लिया. वर्ष 1997 में वे भारत आए और उत्तराखंड के कौसानी में आकर वेद विद्यापीठ की नींव डाली. यहां से वे कई बार उत्तरकाशी भी गए.
अशुतोष कहते हैं कि उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है इसलिए उनका बहुत मन था कि वे वैदिक परंपरा को पुनर्जिवित कर उसका विस्तार करें. बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने साल 2006 के महज़ दो कमरे से इस आश्रम की शुरुआत की और आज इसमें करीब 40 विद्यार्थी शिक्षा दीक्षा का पाठ पढ़ रहे हैं.
‘भारत वाकई में खूबसूरत है’
आशुतोष कहते हैं कि स्विट्जरलैंड और भारत में बहुत अंतर है. लोग कहते हैं कि स्विट्जरलैंड सुंदर है लेकिन भारत वाकई में खूबसूरत है. वे कहते हैं कि, “वहां मैं इंडस्ट्री में काम करता था आज मैं प्रकृति में काम कर रहा हूं. और भारत एक ऐसा देश है जहां पर प्राचीन संस्कृति आज भी जीवित है. भारत प्रकृति के बेहद समीप है और इसलिए पवित्र भी है. यहां उत्तराखंड में वादियों के हिमालय के करीब एहसास होता है कि भारत कितना समृद्ध देश है. भारत के वेद, पुराण , काव्य, ग्रंथ जीवन के मूलभूत आधार हैं और इन्हीं में जीवन का साल छिपा हुआ है.”
वे कहते हैं कि, “मैं चाहता था कि यह सब अध्ययन करने के बाद इसका विस्तार किया जाना चाहिए.और इसलिए इस आश्रम को खोलने की ठानी.” यहां पर जो आचार्य शिक्षा देते हैं, उनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने यहीं पर शिक्षा ग्रहण की थी. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे अब यहीं पर बच्चों को पढ़ा रहे हैं.
अशुतोष बताते हैं कि चूंकि उन्होंने ब्रह्मचर्य जीवन चुना है इसलिए उनके परिवार में उनकी माता और भाई हैं. वे बताते हैं कि कुछ उनकी. माता भी यहीं पर दो साल रहीं और खराब स्वास्थ्य के चलते उनका देहांत हो गया. लेकिन उनके भाई अपने परिवार के साथ स्विट्जरलैंड से यहां पर आते रहते हैं.
वैदिक परंपरा को आगे ले जाना है सपना
अशुतोष मुस्कुराते हुए कहते हैं कि यह बच्चे, हिमालय, नदी और पर्वत ही उनका परिवार है. उनके अनुयायी वैद्यनाथन विवेक भी पहले दिल्ली में नौकरी करते थे. काम के सिलसिले में अमरीका भी गए लेकिन जब आशुतोष से जब मुलाकात हुई तब उन्होंने भी जीवन की दिशा बदलकर आश्रम में सेवाएं देना शुरू कर दी. इसी तरह से उनके साथ कई लोग जुड़े हुए हैं. आगे उनका सपना यही है कि वैदिक परंपरा को आगे ले जाना चाहते हैं. इतना आगे कि भारत एक दिन विश्वगुरु कहलाए और सोने की चिड़िया बन फिर आसमान में सबसे ऊंची उड़ान भरे.