‘अकेलापन सबसे भयानक गरीबी है’, मदर टेरेसा की 112वीं जयंती पर पढ़ें उनके अनमोल विचार और खास बातें

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Mother Teresa 112th Birth Anniversary: शां‍ति दूत और पीड़ित मानवता की मददगार मदर टेरेसा की आज 112वीं जयंती है. उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को अल्बेनियाई परिवार में हुआ था. उन्हें मानवता की प्रतिमूर्ति भी माना जाता है. उन्होंने भारत के दीन-दुखियों की सेवा की थी, कुष्ठ रोगियों और अनाथों की सेवा करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी. उनके इसी योगदान को देखते हुए उन्हें नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया था.

मदर टेरेसा को ‘बीसवीं सदी की फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ भी कहा जाता है. दुनिया उन्हें मदर टेरेसा के नाम से जानती है लेकिन उनका वास्तविक नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था. उन्होंने दुनिया को करुणा, प्रेम और लोगों की मदद करने के बारे में सिखाया.

मदर टेरेसा 1929 में भारत आईं और दार्जिलिंग के सेंट टेरेसा स्कूल में स्टडी की.
24 मई 1931 को अपनी पहली धार्मिक प्रतिज्ञा ली. उनके द्वारा स्थापित संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी आज 123 देशों में एक्टिव हैं. इसमें कुल 4,500 सिस्टर हैं.
1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों की सेवा का संकल्प लिया था.
1950 में टेरेसा ने निस्वार्थ सेवा के लिए कोलकाता में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की थी.
उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार, भारत रत्न, टेम्पटन प्राइज, ऑर्डर ऑफ मेरिट और पद्म श्री से नवाजा गया.
2016 में, उन्हें सेंट पीटर स्क्वायर में पोप फ्रांसिस द्वारा ‘संत’ घोषित किया गया था.
वे अपनी मृत्यु (05 सितंबर 1997) तक कोलकाता में ही रही और आज भी उनकी संस्था गरीबों के लिए काम कर रही है.
मदर टेरेसा के प्रेरणादायक 10 अनमोल विचार

अकेलापन सबसे भयानक गरीबी है.
अगर हमारे बीच कोई शांति नहीं है, तो वह इसलिए क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक दूसरे से संबंधित है.
मैं चाहती हूं कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित रहें.
आज के समाज की सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या तपेदिक नहीं है, बल्कि अवांछित रहने की भावना है.
अगर आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो सिर्फ एक को ही भोजन करा दीजिए.
अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का पुल है.
प्रेम कभी कोई नापतोल नहीं करता, वो बस देता है.
प्यार करीबी लोगों की देखभाल लेने के द्वारा शुरू होता है, जो आपके घर पर हैं.
हम में से हर कोई किसी न किसी वेश में भगवान है.
जख्म भरने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठ से कहीं ज्यादा पवित्र हैं.