छत्तीसगढ़ में 2161 करोड़ के शराब घोटाले के मामले में ACB ने 70 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराई है। इससे पहले ED ने इस घोटाले में IAS अफसर अनिल टुटेजा, अनवर ढेबर और अरुणपति त्रिपाठी को मास्टरमाइंड बताया है। जिसके बाद ACB इस मामले में अलग से कार्रवाई कर रही है। FIR में पूर्व मंत्री कवासी लखमा का नाम भी FIR में शामिल है, जिन्हें हर महीने 50 लाख दिया जाता था।
इसमें उन लोगों को शामिल किया गया है जिन्होंने छत्तीसगढ़ में शराब की आधिकारिक बिक्री के लिए शराब आपूर्तिकर्ताओं से अवैध कमीशन लिया।
वे लोग जिन्होंने राज्य में संचालित दुकानों से ही ऑफ-द-रिकॉर्ड अवैध देशी शराब की बिक्री की। डिस्टिलर्स, होलोग्राम निर्माता, बोतल निर्माता, ट्रांसपोर्टर, ह्यूमन रिसोर्स और जिला उत्पाद शुल्क अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी के साथ इसे किया गया था।
वे लोग जिन्हें डिस्टिलर्स ने कमीशन दिया। मार्केट शेयर में हिस्सेदारी को आपस में बांटने की मंजूरी देने के लिए यह कमीशन दिया गया। IAS अनिल टुटेजा और अनवर ढेबर को शामिल किया गया है। ED की FIR के मुताबिक अवैध वसूली के मुख्य आरोपी अनवर ढेबर को टुटेजा की नजदीकियों का पूरा फायदा मिला। CSMCL के MD के रूप में अरुणपति त्रिपाठी की नियुक्ति अनिल टुटेजा के प्रभाव की वजह से ही हो सकी।
राज्य की नौकरशाही में प्रभाव के कारण, टुटेजा ने अनवर ढेबर और बाकी अधिकारियों के जरिए महत्वपूर्ण नियुक्तियों और सिंडिकेट को नियंत्रित किया। वहीं अनवर ढेबर वो व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे कैश कलेक्शन को नियंत्रित किया। इसके अलावा सिंडिकेट को संरक्षण देने का काम पूर्व IAS विवेक ढांढ ने किया। जिन्हें अवैध राशि का शेयर दिया जाता था।
ढेबर के करीबियों को FL10A लाइसेंसधारी, मैनपावर, कैश कलेक्शन जैसे सभी महत्वपूर्ण जगहों पर रखा गया। उनके सहयोगियों ने हजारों करोड़ रुपए का कमीशन कलेक्ट किया। ED की FIR में अनिल टुटेजा के बेटे यश टुटेजा का भी नाम है।
CSMCL के MD अरुणपति त्रिपाठी को अवैध शराब की बिक्री रोकनी थी लेकिन नियुक्ति के बाद वे रिश्वत-कमीशन को लेकर सिंडिकेट का हिस्सा हो गए। देशी शराब की एक केस पर 75 रुपए कमीशन दिया जाना था। जिसे त्रिपाठी डिस्टिलर और सप्लायर से कमीशन लेकर इसका हिसाब रखते थे। इसके बाद उसे अनवर ढेबर को दिया जाता था।
ED ने अपनी चार्जशीट में बताया कि किस तरह रायपुर के महापौर एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर के आपराधिक सिंडिकेट के जरिए आबकारी विभाग में बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ। ED ने चार्जशीट में कहा है कि पहले साल 2017 में बनी आबकारी नीति को बदलकर CSMCL के जरिए शराब बेचना शुरू किया गया था।
लेकिन 2019 के बाद अनवर ढेबर ने अरुणपति त्रिपाठी को CSMCL का MD नियुक्त कराया, उसके बाद अधिकारी, कारोबारी, राजनीतिक रसूख वाले लोगों के सिंडिकेट के जरिए भ्रष्टाचार किया गया। जिससे 2161 करोड़ का घोटाला हुआ।
चार्जशीट के मुताबिक, बीजेपी सरकार के समय ये नियम बनाया गया था कि सभी एजेंसियों से शराब खरीदी कर इसे दुकानों में बेचा जाएगा। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने इसे बदलकर अपने खास फर्मों को सप्लाई की जिम्मेदारी दे दी।
ये पूरा सिंडिकेट सरकार के इशारों पर ही चलता रहा। पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा को भी इसकी जानकारी थी और कथित तौर पर कमीशन का बड़ा हिस्सा आबकारी मंत्री कवासी लखमा के पास भी जाता था। चार्जशीट के मुताबिक मंत्री कवासी लखमा और तत्कालीन आबकारी आयुक्त निरंजन दास को 50-50 लाख हर महीने दिए जाते थे।