अगले साल अमेरिका एक भारतीय एस्ट्रोनॉट को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन भेजने वाला है. इसके लिए वह ISRO द्वारा चुने गए एस्ट्रोनॉट को अंतरिक्ष यात्रा और स्पेस स्टेशन में काम की ट्रेनिंग भी देगा. यह बात नासा के प्रमुख बिल नेल्सन ने पूर्व भारतीय एस्ट्रोनॉट राकेश शर्मा से मुलाकात के दौरान बेंगलुरू में कही.
बिल ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच स्पेस इंडस्ट्री को लेकर कई बड़े समझौते हुए हैं. हो रहे हैं. हम आपस में साइंस को शेयर करते हैं. बिल नेल्सन NISAR सैटेलाइट की जांच-पड़ताल के लिए बेंगलुरू गए हुए थे. NASA-ISRO SAR यानी निसार सैटेलाइट को धरती की निचली कक्षा में तैनात किया जाएगा. एक SUV के आकार का यह सैटेलाइट अगले साल की पहली तिमाही में लॉन्च किए जाने की संभावना है. NISAR पूरी धरती का हर 12 दिन में एक बार नक्शा बनाएगा. इसमें वह बर्फ की लेयर, ग्लेशियर, जंगल, समंदर का जलस्तर, भूजल, प्राकृतिक आपदाएं जैसे- भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट और भूस्खलन की जानकारी देगा.
भारत अगले एक दशक में अपने सैटेलाइट लॉन्च मार्केट को विश्व स्तर पर पांच गुना बढ़ाना चाहता है. इसलिए इस साल जून में उसने अमेरिका के अर्टेमिस एकॉर्ड पर हस्ताक्षर किया. इस एकॉर्ड में 1967 के आउटर स्पेस ट्रीटी में कई बदलाव किए गए हैं. ताकि ज्यादा से ज्यादा देश इंसानियत की भलाई के लिए जुड़ सकें.
अंतरिक्ष और चंद्रमा पर जाने के दौरान देशों के बीच कॉर्डिनेशन हो. भारत ने अगस्त में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक Chandrayaan-3 की लैंडिंग कराकर दुनिया भर में नाम कमाया. जबकि, रूस का Luna-25 लैंडर दक्षिणी ध्रुव के पास ही क्रैश कर गया. इसके बाद से पूरी दुनिया में भारत की स्पेस इंडस्ट्री की मांग काफी ज्यादा बढ़ गई है
चंद्रमा के फार साइड पर साल 2019 में ही चीन सॉफ्ट लैंडिंग करा चुका है. उसके पास अब भी कई मिशन हैं, जो चांद पर भेजे जाएंगे. चीन ने 2022 में अपने स्पेस मिशन प्रोग्राम्स पर 12 बिलियन डॉलर्स खर्च कर चुका है. यानी 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा. अमेरिका 2025 तक अर्टेमिस मून प्रोग्राम पर 7.75 लाख करोड़ रुपए खर्च करने वाला है