बैंड की धुन पर RSS ने किया पथ संचलन, जगह-जगह फूलों से स्वागत

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विजयादशमी पर बुधवार को बिलासपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने स्थापना दिवस मनाया और शस्त्र पूजन कर लाठी लेकर शौर्य का प्रदर्शन किया। इस दौरान स्वयं सेवकों के साथ पदाधिकारियों ने शहर में पहली बार अलग-अलग 7 जगहों में पथ संचलन किया। जय घोष के साथ बैंड की धुन पर स्वयंसेवक लाठी लेकर कदम ताल करते हुए शहर भ्रमण किया। इससे पहले संघ के पथ संचलन का एक जगह मुख्य आयोजन होता रहा है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अलग-अलग शाखाओं में पिछले एक सप्ताह से बौद्धिक शिविर का आयोजन किया गया था, जिसमें संघ के नए सदस्यों को RSS के स्थापना के उद्देश्यों को बताया गया। इस दौरान उन्हें राष्ट्र भक्ति और मातृ भूमि की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने की जानकारी दी गई। शिविर में स्वयं सेवकों को कदम ताल और लाठी चलाना सिखाया गया। वहीं, विजयादशमी पर्व पर संघ के स्थापना दिवस के अवसर पर पथ संचलन करते हुए नगर भ्रमण किया गया।

सात जगहों पर किया पथ संचलन
शहर में पहली बार संघ की अलग-अलग शाखाओं के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग जगहों से पथ संचलन किया। इसमें तोरवा के गुरु गोविंद नगर, दयालबंद, सरकंडा के राजकिशोर नगर, तिलक नगर चांटापारा और लालबहादुर में कार्यक्रम आयोजित किया गया। केशव उपनगर के स्वयंसेवक लाल बहादुर शास्त्री स्कूल परिसर में इकट्ठा हुए। शास्त्री स्कूल से स्वयंसेवक पथ संचलन के लिए निकले। यहां से गोड़पारा होते हुए मध्यनगरीय चौक, तेलीपारा,कोतवाली चौक होते हुए लाल बहादुर शास्त्री स्कूल परिसर में समापन हुआ।

जगह-जगह फूलों से स्वागत
पथ संचलन में घोष दल के साथ बैंड के धुन बज रहे थे। इस दौरान स्वयं सेवकों का शहर वासियों ने जगह-जगह स्वागत किया और फूल वर्षा करते रहे। फुलपैंट और सफेद शर्ट, पैरों में जूतों के साथ ही सिर में संघ की काली टोपी पहने और हाथ मे लाठी लिए स्वयं सेवक कदमताल करते नजर आए। सरकंडा में भी स्वयं सेवकों का स्वागत किया गया और दुर्गावाहिनी की महिलाओं ने उनकी आरती उतारी।

पदाधिकारी बोले- संस्था नहीं है RRS, समाज जागरण का आंदोलन है
इस कार्यक्रम में स्वयं सेवकों को संबोधित भी किया गया। संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि RSS कोई संस्था नहीं है। बल्कि समाज को जागृत करने के लिए एक आंदोलन है। जब तक समाज जागृत नहीं होगा, तब तक संघ का आंदोलन चलता रहेगा। विजयादशमी पर्व को आसुरी शक्ति पर देवीय शक्ति की जीत का प्रतीक माना जाता है। असुरों ने प्रारंभ से ही हमारी संस्कृति और समाज को अत्याचार से प्रताड़ित करने का प्रयास किया। असुरों ने समाज को विकृत करने का प्रयास जरूर किया। लेकिन, हमारी संस्कृति को समाप्त नहीं कर सके। डॉ. केशव हेडगेवार ने इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर आज ही के दिन संघ की स्थापना की। उनका मानना था कि समाज में जागृति लाना और एकजूट नहीं होगा, तब तक आसुरी शक्ति से मुकाबला आसान नहीं होगा।