रामानंद सागर का रामायण शो भी फंसा था कानूनी पचड़े में, PMO की सलाह पर जुड़ा था ‘लवकुश कांड’

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फिल्म आदिपुरुष लगातार कंट्रोवर्सी का सामना कर रही है. हालांकि जब रामानंद सागर की रामायण टेलीविजन पर आई थी, तो उस दौरान भी रामानंद सागर को इसकी रिलीज से लेकर इसके आखिरी एपिसोड्स तक कई तरह के विवादों से गुजरना पड़ा था. यहां तक की सीरियल के खत्म होने के बाद भी रामानंद सागर लगभग दस साल तक इलाहाबाद के कोर्ट में हाजरी लगाते रहे. किस-किस तरह के विवाद से गुजरी थी रामायण, खुद बता रहे हैं रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर.

रामायण नहीं मार्बल कॉमिक्स जैसा नाम दें
प्रेम सागर ने आदिपुरुष को लेकर चल रहे विवाद पर रिएक्ट करते हुए कहते हैं, ‘किसी के हाथ में एटम बॉम देते हो, तो उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वो कैसे उसका इस्तेमाल किया है. ठीक वैसे ही अगर मां सरस्वती ने आपको कला से नवाजा है, तो आप पर एक जिम्मेदारी बन जाती है. कलम की बहुत बड़ी ताकत होती है. कला के साथ एक जिम्मेदारी आती है. जब उस पावर के साथ धर्म जुड़ जाता है, तो जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. आपकी जवाबदेही है कि अपने देश, धर्म और लोगों के सेंटीमेंट्स का ख्याल रखें, इसके साथ खिलवाड़ कतई गवारा नहीं है. सौ करोड़ लोगों के अंदर जो राम और रावण की इमेज है, उसे कैसे तोड़ सकते हैं? अगर आप कुछ अलग करना चाहते हैं, तो आप उसे मार्बल कॉमिक्स जैसा नाम दीजिए न आप उसे बाल्मिकी जी की रामायण तो नहीं बता सकते हैं. क्रिएटिव लिबर्टी तो मेरे पापाजी (रामानंद सागर) जी ने भी बहुत ली है, लेकिन पूरी जिम्मेदारी के साथ उसका मान रखा है.’

‘किस रामायण में राम जी के गुरूकुल का जिक्र है?’
प्रेम सागर बताते हैं, ‘भरत का जब राज तिलक होता है. जब श्रीराम वनवास के लिए चले जाते हैं, तो उस वक्त भरत आकर कहते हैं कि एक राजा बनने के लिए आपको उत्तराधिकारी होने के साथ-साथ, जनता के बीच आपका वोट होना चाहिए और तीसरा गुरु भी इसके लिए राजी होने चाहिए. जो कि वंशवाद पर प्रहार था. दरअसल पापाजी चाहते थे कि ये वंशवाद का मैसेज न जाए. ये सीन उन्होंने क्रिएटिव लिबर्टी का हक लेते हुए फिल्माया था.

वहीं दूसरा सीन आप बताएं किस रामायण में राम के गुरुकुल जाने का जिक्र है? वो विष्णु अवतार हैं, उन्हें कौन शिक्षा दे सकता है? लेकिन यहां पापा ने गुरुकुल का सीक्वेंस भी रखा था. इसके पीछे पापाजी की मंशा यही थी कि जो हमारे देश में गुरुकुल की परंपरा खत्म सी हो गई है, उसे लोगों के बीच पहुंचाया जाए. हालांकि ऐसा करने से पहले उन्होंने कई चर्चा की, उन्होंने धर्मवीर भारती, शिवसेन मंगल, जेएनयू के वाइस चांसलर विष्णु मल्होत्रा जैसे लोगों संग मीटिंग्स की. वो इस बात से परेशान थे कि गुरुकुल में जाकर राम क्या बोलेगें? गुरु क्या जवाब देंगे? हमने राम के स्टूडेंट होने वाली लिबर्टी ली थी. इसमें कितनी रातें ब्रेनस्ट्रोमिंग करते हुए गुजरी हैं. इसमें राम पूछते हैं कि मृत्यु क्या है, जीवन क्या है,ताकि लोगों के बीच इनसब चीजों का ज्ञान बढ़े.’

प्रधानमंत्री के ऑफिस से कॉल आ गया था
प्रेम सागर कहते हैं, ‘आप देखेंगे कि तुलसीदास ने भी रामायण रामराज तक ही लिखी है. उन्होंने लव-कुश का हिस्सा लिखा ही नहीं था. केवल ऋषि बाल्मिकी जी ने लव-कुश का हिस्सा लिखा है. तुलसीदास जी का तर्क था कि मेरे राम तो मर्यादापुरुष हैं, वो सीता को वनवास कैसे भेज सकते हैं? सीता जी गर्भवती हैं, वो लक्ष्मण को बोलकर कपट से सीता को कैसे जंगल में छोड़ सकते हैं? ये मेरे पापाजी ने भी कहा कि मेरा राम ऐसा नहीं कर सकता है. जब रामायण पास हुई थी, तो गर्वनमेंट को पहले से ही कह दिया था कि मैं राम राज में इसे खत्म करूंगा. जब रामायण पूरी खत्म हुई थी, तो पूरे देश में आग लग गई थी. एक समाज के बीच आक्रोश फैल गया था कि हम बाल्मिकी वाले हिस्से को कैसे नहीं दिखाएंगे. वहीं पापा भी अड़े रहे थे क्योंकि वो वाल्मिकी जी के उस अध्याय से सहमती नहीं रखते थे. फिर पापाजी को प्राइम मिनिस्टर के ऑफिस से कॉल आ गया था. वहां से भी डिमांड होने लगी कि रामायण के उस हिस्से को दिखाया जाए. तब समझौता हुआ और पापाजी ने एक शर्त रखी कि मैं बनाउंगा जरूर लेकिन एक खास एपिसोड एडिट नहीं किया जाएगा.’

कोर्ट में दस साल तक केस चलता रहा
उस सीन का जिक्र करते हुए प्रेम सागर बताते हैं, ‘सीता के वनवास का एक एपिसोड है. जैसे राम के गुप्तचर थे, ठीक वैसे ही सीता माता के भी गुप्तचर हुआ करते थे. राम के गुप्तचर ने राम को बताया कि प्रजा बड़ी नाराज है, सीता को रावण ने रखा और आपने उन्हें स्वीकार लिया, सीता को छोड़ देना चाहिए. जिसे सुनकर राम मझधार में थे कि वो राज धर्म निभाएं या पति धर्म. वहीं सीता के गुप्तचर भी आकर बताते थे कि राम परेशान हैं और उन्हें समझ नहीं आ रहा वो क्या करें.

यहां सीता जाकर राम से कहती हैं. पापाजी ने इस पर बहुत रिसर्च किया था. वो राधेश्याम की रामायण लेकर आ गए. जिसमें लिखा है सीता राम से कहती है कि मैं जाऊंगी वनवास, मैं अर्धांगिनी हूं, मेरे पति के राजधर्म पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए. ये भी एक क्रिएटिव लिबर्टी थी. जबकि राम रोते हैं. लक्ष्मण भी जब छोड़ने जाते हैं, तो वहां सीता उन्हें रोककर आगे बढ़ जाती हैं. हालांकि इस लिबर्टी की वजह से कई कानूनी पचड़ों का सामना करना पड़ा था. इलाहाबाद के कोर्ट में दस साल तक केस चलता रहा. मैं कहूंगा कि क्रिएटिव लिबर्टी जरूर लो लेकिन उसकी बेहतरी के लिए.’