सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को देश भर में चुनाव से पहले किए जाने वाली फ्री योजनाओं के वादे के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने ‘रेवड़ी कल्चर’ पर सख्ती दिखाते हुए केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और याचिका के सभी पक्षों से एक संस्था के गठन पर सुझाव मांगा है, जो चुनाव से पहले ‘रेवड़ी कल्चर’ मामले पर विचार कर हल निकाले.
दरअसल, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील विकास सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा कि ये फ्री योजनाएं देश, राज्य और जनता पर बोझ बढ़ाता है. इस पर सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से तो सरकार भी इस दलील से सहमत है. इससे वोटर की अपनी राय डगमगाती है. ऐसी प्रवृत्ति से हम आर्थिक विनाश की ओर बढ़ रहे हैं.
विकास सिंह ने कहा कि राजनीतिक दलों को फ्री बी के लिए पैसा कहां से मिलता है? सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग को एक बार समीक्षा करने दिया जाए और सोमवार को मामले पर सुनवाई की जाए. वहीं, कोर्ट ने सभी पक्षों को 7 दिन में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. इस मामले में 11 अगस्त को अगली सुनवाई होगी.
सुनवाई के दौरान जब याचिकाकर्ता के वकील ने पूछा कि आखिर किसकी जेब से यह मुफ्त का सामान दिलाया जाता है?. इस पर CJI एनवी रमणा ने कहा कि यह तो हम सबकी जेब से जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्री बी कल्चर से निपटने के लिए एक निकाय बनाने की जरूरत है. इसमें केंद्र, विपक्षी दल, चुनाव आयोग, नीति आयोग, आरबीआई और अन्य हित धारकों को शामिल किया जाए. कोर्ट ने कहा कि इसमें फ्री बी पाने वाले और इसका विरोध करने वाले भी शामिल हों.
पिछली सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया था कि मुफ्त उपहार और चुनावी वादों से संबंधित नियमों को आदर्श आचार संहिता में शामिल किया गया है, लेकिन इस प्रथा को दंडित करने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कोई भी कानून सरकार को बनाना होगा. इस पर सीजेआई ने कहा कि आदर्श आचार संहिता बिल्कुल भी काम नहीं करती है. मेरे ख्याल से यह काम ही नहीं करता.