वैज्ञानिकों ने चखा 260 करोड़ साल पुराने पानी का स्वाद, पीते ही बोले ये तो..
कनाडा की एक खदान के मीलों नीचे वैज्ञानिकों ने अनोखी खोज की है वह है अरबों साल पुराना पानी. इस खोज से वैज्ञानिक हैरान रह गए हैं, ना सिर्फ इसलिए कि यह पानी बहुत पुराना है बल्कि इसलिए भी कि इसने खुलासा किया है कि असंभव लगने वाली जगहों पर भी जीवन हो सकता है. नेचर पत्रिका में प्रकाशित इस खोज में धरती की गहरी जैवमंडल की हमारी समझ को बदल दिया है और यह हमारे ग्रह से बाहरी जीवन की संभावनाओं के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकती है.
प्रोफेसर बारबरा शेरवुड लोलर के नेतृत्व में भूवैज्ञानिकों की टीम धरती के छिपे जीवन के बारे में जानने के लिए एक कनाडाई खदान में लगभग 3 किमी नीचे गई. उन्हें जो भी मिला वह उम्मीद से ज्यादा था. टीम को वहां मिला बहता हुआ पानी जो लगभग 2.6 अरब सालों से चट्टान के अंदर बंद था. यह पानी किसी शांत तालाब की तरह नहीं था बल्कि चट्टान से सक्रिय रूप से उबल रहा था. प्रोफेसर शेरवुड ने बताया की जब लोग इस पानी के बारे में सोचते हैं तो उन्हें लगता है कि यह चट्टान के अंदर फंसा होगा. लेकिन असल में यह सीधे ऊपर की ओर उबल रहा है और लीटर प्रति मिनट की दर से बह रहा है जो उम्मीद से ज्यादा है. नेचर पत्रिका में छपे अध्ययन में टीम ने ना केवल इस पानी की उम्र बताई बल्कि इसकी रासायनिक जीवन शक्ति की भी जांच की.
इस खोज से वैज्ञानिकों को एक आत्मनिर्भर जीवन तंत्र देखने का दुर्लभ मौका मिला है जो सूर्य के प्रकाश से पूरी तरह अलग होकर विकसित हुआ. वैज्ञानिकों ने पाया कि रसायन अभी भी सक्रिय था. यह धरती की प्राचीन पपड़ी का ऐसा टाइम कैप्सूल है जो हमें यह समझने में मदद करता है कि बिना सूरज की रोशनी वाली मुश्किल हालातों में जीवन कैसे टिका रह सकता है.
इस पुराने पानी में सल्फेट के कुछ अंश मिले जिसने यह साबित किया कि करोडों सालों में यहां सूक्ष्मजीवों की गतिविधियां चल रही थीं. प्रोफेसर शेरवुड और उनकी टीम ने उन रासायनिक निशानों की जांच की जो सूक्ष्मजीवों को पीछे छोड़ रहे थे. यह खोज धरती के बाहर के जीवन के लिए बहुत मायने रखती है. इतनी अंधेरी और भारी दबाव वाले हालात में सूक्ष्मजीवों का जीवित रहना बताता है कि मंगल, यूरोपा या एन्सेलाडस जैसी जगहों के नीचे जीवन हो सकता है.
प्रोफेसर शेरवुड लोलर ने इसके स्वाद का पता लगाने के लिए इसे खुद पीने का फैसला किया. इसका स्वाद चखने के बाद उन्होंने कहा कि यह पानी बेहद नमकीन और कड़वा था. यह आम समुद्र के पानी से भी कहीं ज्यादा नमकीन था.
