वैज्ञानिकों की चेतावनी…हर साल गायब होंगे 4000 ग्लेशियर, ग्लोबल वॉर्मिंग ने खड़ा किया नया संकट

2019 में स्विट्जरलैंड में 700 साले पुराने ग्लेशियर को विदा करने के लिए सैकड़ों लोग जमा हुए थे जो बहुत चिंता से भरा समय था. जलवायु परिवर्तन के कारण पिजोल अब सिर्फ बर्फ के कुछ बिखरे हुए ग्लेशियर के टुकड़ों में बदल गया है. यह पहला मामला नहीं है, पिछले कुछ दशकों में हजारों ग्लेशियर गायब हो चुके हैं और अब यह दर बहुत ही तेजी से बढ़ने वाली है. नेचर क्लाइमेट चेंज में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अगर प्रदूषण फैलना ऐसे ही जारी रहता है तो सदी के मध्य तक ग्लेशियरों के गायब होने की दर अपने चरम पर होगी. अगर ऐसे ही प्रदूषण बढ़ता रहा तो हर साल दुनिया भर से 4,000 तक ग्लेशियरों की संख्या कम हो सकती है. यह संख्या यूरोप से आल्प्स पर्वतमाला के सभी ग्लेशियरों के एक साल में खत्म हो जाने के बराबर है. वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ग्लेशियर किस साल सबसे ज्यादा तेजी से गायब होंगे जिसे उन्होंने ग्लेशियर विलुप्ति का चरम का नाम दिया है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह ग्लेशियरों का पिघलना Global Warming के स्तर पर निर्भर करता है. अगर तापमान में बढ़ोतरी 1.5 डिग्री होती है तो लगभग 2041 तक दो हजार ग्लेशियर गायब होंगे. अगर तापमान 2.7 डिग्री बढ़ता है तो 2040 से 2060 के बीच लगभग 3000 ग्लेशियर और 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर 2050 के दशक के मध्य तक लगभग 4,000 ग्लेशियर गायब होंगे.

छोटे ग्लेशियर वाले इलाके जैसे यूरोपीय आल्प्स और उत्तरी एशिया में अगले 2 दशकों में आधे से ज्यादा ग्लेशियर गायब हो सकते हैं और 2040 तक ही विलुप्ति का चरम आ जाएगा. इसके अलावा बड़े ग्लेशियर वाले क्षेत्र जैसे ग्रीनलैंड और रूसी आर्कटिक में Peak Extinction सदी के अंत में देरी से देखने को मिलेगा. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्लेशियर अब सिर्फ पिघल नहीं रहे बल्कि पूरी तरह से विलुप्त हो रहे हैं. 2100 तक अगर 2.7 डिग्री वॉर्मिंग हुई तो केवल 20% ग्लेशियर बचेंगे जबकि 4 डिग्री पर ग्लेशियर लगभग पूरी तरह खत्म हो जाएंगे. ग्लेशियर कई समुदायों के लिए पानी का महत्वपूर्ण सोर्स हैं और साथ ही उनका सांस्तिक महत्व है और वे पर्यटन को भी आकर्षित करते हैं.

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