शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का 99 साल की उम्र में निधन हो गया। उनका छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा। वो देशभर में अपने दौरों के बीच अक्सर रायपुर आते थे। बोरियाकला में उन्होंने आश्रम की स्थापना की थी। यहां कई धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में वो आया करते थे। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती आखिरी बार सितंबर के ही महीने में साल 2019 में आए थे। तब यहां आश्रम में ही उन्होंने ऐसी वाटिका की शुरूआत की थी जहां नक्षत्रों और ग्रहों के हिसाब से पौधे लगाकर पर्यावरण को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया था।
जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो पीठ (द्वारका एवं शारदा) के शंकराचार्य थे। उन्होंने रविवार को परमहंसी गंगा आश्रम झोतेश्वर जिला नरसिंहपुर में अंतिम सांस ली। फिलहाल उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। सोमवार शाम उनका अंतिम संस्कार होगा।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का बेंगलुरु में इलाज चल रहा था। कुछ ही दिन पहले ही वह आश्रम लौटे थे। हाल ही में तीज के दिन स्वामी का 99वां जन्मदिन मनाया गया था। शंकराचार्य के निधन से छत्तीसगढ़ दुखी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा- पूज्य जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के देवलोकगमन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। ऐसे महान संत पृथ्वी को आलोकित करते हैं। उनके श्रीचरणों में बैठकर आध्यात्म का ज्ञान और आशीर्वाद के क्षण सदैव याद आएँगे। ॐ शांति:
कौन थे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती
9 साल की छोटी सी उम्र में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने घर का त्याग कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली। ये वो वक्त था जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई चल रही थी। 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में पहचाने जाने लगे थे। उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ महीने और अपने गृह राज्य मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।