शरद पूर्णिमा सनातन धर्म में विशेष महत्व रखती है, जिसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ या ‘रास पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन, व्रत और रात के समय चंद्रमा की उपासना से जुड़ा होता है। नारद पुराण के अनुसार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है, इससे प्रसन्न हुई लक्ष्मी इस लोक में सुख-समृद्धि प्रदान करती है। इस दिन खीर को खुले आसमान के नीचे रखने की परंपरा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व दोनों ही गहरा है। आश्विन माह के पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 16 अक्टूबर को रात्रि 08 बजकर 40 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 17 अक्टूबर को शाम को 04 बजकर 55 मिनट पर होगा। ऐसे में शरद पूर्णिमा का पर्व 16 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन चंद्रोदय शाम को 05 बजकर 05 मिनट पर होगा। शरद पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इस दिन लोग मां लक्ष्मी, चंद्रदेव और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों के संग रास रचाया था।
शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 42 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। वहीं स्नान-दान का समय सुबह 4 बजकर 42 मिनट से लेकर सुबह 5 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। हालांकि राहुकाल और भद्राकाल को छोड़कर किसी भी शुभ मुहूर्त में दान किया जा सकता है।
शरद पूर्णिमा का समय वर्ष का वह चरण होता है जब मौसम बदल रहा होता है। गर्मियों के बाद यह पहली पूर्णिमा होती है और वातावरण में ठंडक का आगमन होने लगता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है, जिससे उसकी किरणें अत्यधिक प्रभावी होती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंद्रमा की किरणें वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा को कम करती हैं और खीर जैसे भोजन पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव डालती हैं। चंद्रमा की किरणों का सकारात्मक प्रभाव खीर के माध्यम से शरीर और मन दोनों पर पड़ता है, जो इसे एक विशेष और पवित्र अनुष्ठान बनाता है। आयुर्वेद के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों में बैठकर खीर खाने से शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है