देश के चार राज्यों से लगी म्यांमार सीमा सील करने के केंद्र के फैसले को लेकर पहाड़ और घाटी दो हिस्सों में बंट गए हैं। घाटी के लोग खुश हैं। वहीं, पहाड़ी विरोध में हैं। यहां तक कि मिजोरम और नगालैंड के CM भी विरोध में उतर आए हैं। मैतेई समुदाय की संस्था कोकोमी सहित घाटी के संगठनों का कहना है कि इससे शरारती तत्वों की आवाजाही रुकेगी और सीमाएं सुरक्षित होंगी। कोकोमी प्रवक्ता खुराइजम अथौउबा ने कहा कि मणिपुर में चल रहे हिंसक संकट के मूल में म्यांमार से यहां हो रहा पलायन है।
दूसरी तरफ, मिजोरम के मुख्यमंत्री लल्दुहोमा का कहना है कि सीमा के दोनों तरफ रहने वाले मिजो-जो-चिन समुदाय को क्षेत्र में आने-जाने से नहीं रोका जा सकता। वे अंग्रेजों के समय एकतरफा तरीके से निर्धारित की गईं सीमाओं को नहीं मानते।
इस बीच नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने भी कहा कि जहां तक नगालैंड का सवाल है तो सीमा के दोनों तरफ नगा रहते हैं। केंद्र को फैसले पर अमल करने से पहले एक सर्वमान्य फॉर्मूला बनाना चाहिए। इस फैसले पर नगा छात्र संगठन NSF ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि भारत और म्यांमार सीमा के दोनों तरफ नगा लोगों का स्वतंत्र नागरिक की तरह रहने का जन्मसिद्ध अधिकार है। NSF ने कहा कि केंद्र के इस फैसले के गंभीर संकट पैदा होंगे। UN को इस मामले में दखल देना चाहिए। मिजोरम में तमाम संगठन भी इस फैसले के खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं।
मणिपुर के सीमाई इलाकों में रहने वाले लोगों के मुताबिक, सीमाबंदी से मानवीय संकट खड़ा होगा। उनके सदियों से खून के संबंध हैं। हर सुख-दुख में आना-जाना लगा रहता है। कई स्थानों पर लोगों के घर सीमा के दोनों तरफ हैं। वहां स्पष्ट तरीके से बंटवारा नहीं है। ऐसे में व्यावहारिक दिक्कत भी पैदा होगी। केंद्र सरकार ने गुरुवार (8 फरवरी) को भारत-म्यांमार के बीच फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) को खत्म करने की घोषणा की थी। इससे दोनों देशों के बीच बॉर्डर के पास रहने वाले लोगों का आना-जाना बंद हो गया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा- भारत की आंतरिक सुरक्षा और नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों की डेमोग्राफी को बरकरार रखने के लिए यह फैसला किया गया है