मणिपुर : आदिवासियों की जंग..हिंसा रुक ही नहीं रही…

राष्ट्रीय

मणिपुर दहल रहा है, दहक रहा है। सीमाओं से सटे सारे घर जला दिए गए हैं। लोग पलायन कर रहे हैं। जिसे जहां जगह मिल रही है, वहाँ जा रहा है। लोग भाग रहे हैं। वे भागते- भागते मारे जा रहे हैं। वे चलते-चलते मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। क़ानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। सरकार और सरकारी तंत्र की कोई सुनने को तैयार नहीं है। झगड़ा कुकी और मैतेई सम्प्रदाय का है। कुकी आदिवासी अपनी ज़मीन छोड़ना नहीं चाहते, इसलिए दूसरे सम्प्रदाय को आदिवासी दर्जा दिए जाने का इस हद तक विरोध कर रहे हैं कि पिछले एक महीने से यहाँ सब कुछ ठप है।

घर, दुकान, बाज़ार, ऑफिस, स्कूल, कॉलेज सब कुछ बंद। यहाँ तक कि आम जीवन भी ठप। साँस लेने को कभी कर्फ़्यू में ढील दी भी जाती है तो उस वक्त हर तरफ़ इतनी भीड़ और इतनी गर्दी रहती है कि न कोई काम होता, न कुछ मिल पाता। लोग नौकरी पर नहीं जा पा रहे हैं। उनकी नौकरी छूटती जा रही है। खाने-पीने की चीज़ मिल ही नहीं रही है। दाम आसमान पर हैं, फिर भी मिलना मुश्किल। आलू-प्याज़ तक सौ रुपए किलो से ऊपर जा चुके हैं।
तना दाम चुकाने पर भी कुछ मिलना असंभव प्रतीत हो रहा है। ज्ञातव्य है कि मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने के बाद पिछली तीन मई को यहाँ हिंसा भड़की थी। तब से अब तक हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है।

मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह कुछ कर नहीं पा रहे हैं। एक केंद्रीय मंत्री का पहले सरकारी आवास जलाया गया था। गुरुवार को उनका निजी आवास भी फूंक दिया गया। इसके बाद उन्होंने व्यथित होकर कह दिया है कि यहाँ अब क़ानून-व्यवस्था नहीं रह गई है। सरकार कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं है।

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन…

मंत्री के इस बयान के बाद लग रहा है कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इसके सिवाय कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि, राज्य में अभी केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है लेकिन क्या किया जा सकता है? हालात इतने बिगड़ गए हैं कि केंद्र सरकार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने पर विवश होना पड़ सकता है।