राजस्थान कांग्रेस में फिर से गहमा-गहमी बढ़ती जा रही है. पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट मंगलवार दोपहर जयपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहे हैं. यहां वह पिछले दिनों सीएम अशोक गहलोत द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब देंगे. वह ऐसे समय में यह प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहे हैं, जब राहुल गांधी के कार्यक्रम में शामिल होने गहलोत सरकार के मंत्री-विधायक माउंट आबू जाएंगे. दरअसल राहुल गांधी का आज राजस्थान दौरा भी है. भारत जोड़ो यात्रा के बाद पहली बार वह यहां आ रहे हैं. राहुल माउंट आबू में कांग्रेस के सर्वोदय संगम कैंप में शामिल होंगे. यहां वह डैलीगेट्स से संवाद करेंगे. वह पहले फ्लाइट से उदयपुर पहुंचेंगे, यहां से वह हेलिकॉप्टर के जरिए माउंट आबू जाएंगे. इस दौरान सीएम अशोक गहलोत समेत कांग्रेस के तमाम नेता मौजूद रहेंगे.
विधायकों पर करोड़ों रुपये लेने का आरोप
अशोक गहलोत ने रविवार को पूर्व सीएम और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे को कांग्रेस सरकार के लिए ‘संकट मोचक’ बताया था. उन्होंने दावा किया था कि 2020 में में कांग्रेस के कुछ विधायकों की बगावत के वक्त वसुंधरा राजे और बीजेपी नेता कैलाश मेघवाल ने उनकी सरकार बचाई थी.
इस दौरान उन्होंने सचिन पायलट खेमे पर बीजेपी से करोड़ों रुपये लेने का आरोप लगा दिया था. उन्होंने धौलपुर के राजाखेड़ा के पास महंगाई राहत कैंप की सभा में कहा था कि उस वक्त हमारे विधायकों को 10 से 20 करोड़ बांटा गया. उन्होंने यह भी कहा था कि वह पैसा अमित शाह को वापस लौटा दें. अगर आपने उनमें से कुछ खर्च कर दिया है मुझसे ले लें, लेकिन पैसे वापस कर दें.
दरअसल 11 जुलाई 2020 को तत्कालीन डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया था. उन्हें पार्टी के 19 विधायकों ने अपना समर्थन भी दे दिया था. इन विधायकों के साथ पायलट गुरुग्राम के मानेसर स्थित रिजॉर्ट में पहुंच गए था. 12 जुलाई को पायलट ने गहलोत सरकार को गिराने के संकेत भी दे दिए थे. हालांकि गहलोत किसी तरह अपनी सरकार बनाने में सफल हो गए थे.
पायलट ने गहलोत को फिर बनाया था निशाना
बाड़मेर में वन मंत्री हेमाराम चौधरी के बेटे की याद में वीरेंद्र धाम हॉस्टल के उद्घाटन के मौके पर सचिन पायलट ने 6 मई को फिर से भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते हुए हमला बोला था. इस मौके पर पायलट के साथ राजस्थान के 25 से ज्यादा विधायक बाड़मेर में मौजूद थे. इनमें से ज्यादातर मंत्रियों और विधायकों ने पायलट को जिम्मेदारी देने की मांग की.
उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहूंगा. भले ही कुछ लोगों को अच्छा लगे या बुरा लगे. भ्रष्टाचार समाज को दीमक की तरह खाए जा रहा है. हम सब को इसके खिलाफ लड़ना चाहिए. उन्होंने कहा था कि राजस्थान में जब पेपर लीक होता है तो तकलीफ होती है, क्योंकि युवाओं कासपना बर्बाद होता है. हमें इसे रोकना होगा.
वॉर्निंग के बाद भी धरने पर बैठे गए थे पायलट
सचिन पायलट 11 अप्रैल की सुबह जयपुर के शहीद स्मारक पर एक दिन के लिए अनशन पर बैठ गए थे. इससे पहले उन्होंने 9 अप्रैल को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी दी थी. इसमें उन्होंने राजस्थान की वसुंधरा राजे की पूर्व सरकार में हुए कथित घोटालों पर कार्रवाई न करने पर अपनी ही सरकार को घेर लिया था. इसके साथ ही पायलट ने उस चिट्ठी को भी सार्वजनिक कर दिया है जो चिट्ठी उन्होंने 28 मार्च 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखी थी. इतना ही नहीं नवंबर 2022 में फिर से लिखी गई चिट्ठी का जिक्र भी उन्होंने किया. पायलट ने कहा था कि मौजूदा सरकार आबकारी माफिया, अवैध खनन, भूमि अतिक्रमण और ललित मोदी हलफनामे वाले मामले में कार्रवाई करने में विफल रही है.
वहीं धरना देते वक्त पायलट ने कहा था कि वसुंधरा राजे के कार्यकाल में जब हम विपक्ष में थे तो हमने बहुत सारे घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों को उजागार किया था. हमने जनता से वादा किया था कि जब हम सरकार में आएंगे तब वसुंधरा जी और बीजेपी के शासन में तमाम जो घोटाले हुए उसके खिलाफ प्रभावशाली कार्रवाई करेंगे. अब जब हम सरकार में हैं, तो 4 साल से ज्यादा का समय बीत गया, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई इसलिए मैंने अनशन रखा.
हालांकि राजस्थान कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने पायलट को धरने पर जाने से रोकने के लिए उन्हें चेतावनी भी थी लेकिन उन्होंने सभी बातों को नजर अंदाज कर दिया था. रंधावा ने कहा था- “मैं पिछले पांच महीने से AICC का प्रभारी हूं, लेकिन पायलट ने इस मुद्दे पर कभी भी मुझसे चर्चा नहीं की.” इसके बाद उनके इस कदम को पार्टी विरोधी करार दिया गया था. हालांकि आलाकमान ने उनकी इस हरकत को लेकर अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया है.
नवंबर 2018 से जारी है दोनों नेताओं में अदावत
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच 2018 के चुनाव के बाद से ही तना-तनी बनी हुई है. नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन उसे 99 सीटें ही मिल सकीं. ऐसे में सीएम पद को लेकर दोनों नेता अड़ गए. पायलट कांग्रेस अध्यक्ष होने और बीजेपी के खिलाफ पांच सालों तक संघर्ष करने के बदले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावेदारी जता रहे थे तो अशोक गहलोत ज्यादा विधायकों का अपने पक्ष में समर्थन होने और वरिष्ठता के आधार पर अपना हक बता रहे थे.
कांग्रेस विधानसभा में बहुमत से दो सीटें दूर थी. ऐसे में अशोक गहलोत ने बसपा के 6 और 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन कांग्रेस के पक्ष में जुटा लिया, जिसके चलते उन्होंने सीएम की कुर्सी पुख्ता कर ली. इसी के बाद पायलट ने उनके खिलाफ विरोधी सुर अख्तियार कर लिया.