छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन गया है. छत्तीसगढ़ की पूरी राजनीति की धूरी आरक्षण पर आकर टिक गई है. चाहे विपक्ष हो या मौजूदा सरकार दोनों इस पूरे मामले पर जमकर राजनीति कर रहे हैं. आरक्षण का असर भानूप्रतापपुर उपचुनाव में देखने को मिल रहा है. आदिवासी कुनबा सरकार से बेहद नाराज है जिसके कारण आदिवासी समाज ने एकजुटता दिखाते हुए अपने प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है. उन्होंने यह कहा है कि हम छत्तीसगढ़ की दोनों पार्टियों- बीजेपी और कांग्रेस का बहिष्कार करते हैं और आने वाले समय में दोनों पार्टियों को सबक सिखाएंगे.
गौरतलब हो आदिवासियों की नाराजगी का सबसे बड़ा खामियाजा वर्तमान सरकार यानी कांग्रेस पार्टी को भुगतना पड़ेगा. जानकार मानते हैं कि भानूप्रतापपुर चुनाव कांग्रेस के लिए लोहे के चने चबाने जैसा हो गया है. आदिवासी वर्ग को खुश करने के लिए भूपेश सरकार आनन-फानन में आरक्षण को लेकर संशोधन विधेयक को पेश करके आदिवासी वर्ग को खुश करने में लगा हुआ है.
आरक्षण संशोधन विधेयक के प्रस्ताव को गुरुवार को कैबिनेट में मंजूरी दे दी गई. इसे सरकार विधानसभा के विशेष सत्र में पेश करेगी. इस विधेयक में आदिवासी 32%, ओबीसी 27% , एससी 13% और ईडब्ल्यूएस को 4% आरक्षण प्रस्तावित है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद सरकार के प्रवक्ता मंत्री रविंद्र चौबे ने यह जानकारी दी लेकिन तकनीकी कारणों से यह बताने में असमर्थता जताई कि संशोधन विधेयक में किस वर्ग को कितना आरक्षण का प्रावधान किया गया है.
छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन गया है. छत्तीसगढ़ की पूरी राजनीति की धूरी आरक्षण पर आकर टिक गई है. चाहे विपक्ष हो या मौजूदा सरकार दोनों इस पूरे मामले पर जमकर राजनीति कर रहे हैं. आरक्षण का असर भानूप्रतापपुर उपचुनाव में देखने को मिल रहा है. आदिवासी कुनबा सरकार से बेहद नाराज है जिसके कारण आदिवासी समाज ने एकजुटता दिखाते हुए अपने प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है. उन्होंने यह कहा है कि हम छत्तीसगढ़ की दोनों पार्टियों- बीजेपी और कांग्रेस का बहिष्कार करते हैं और आने वाले समय में दोनों पार्टियों को सबक सिखाएंगे.
गौरतलब हो आदिवासियों की नाराजगी का सबसे बड़ा खामियाजा वर्तमान सरकार यानी कांग्रेस पार्टी को भुगतना पड़ेगा. जानकार मानते हैं कि भानूप्रतापपुर चुनाव कांग्रेस के लिए लोहे के चने चबाने जैसा हो गया है. आदिवासी वर्ग को खुश करने के लिए भूपेश सरकार आनन-फानन में आरक्षण को लेकर संशोधन विधेयक को पेश करके आदिवासी वर्ग को खुश करने में लगा हुआ है.
आरक्षण संशोधन विधेयक के प्रस्ताव को गुरुवार को कैबिनेट में मंजूरी दे दी गई. इसे सरकार विधानसभा के विशेष सत्र में पेश करेगी. इस विधेयक में आदिवासी 32%, ओबीसी 27% , एससी 13% और ईडब्ल्यूएस को 4% आरक्षण प्रस्तावित है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद सरकार के प्रवक्ता मंत्री रविंद्र चौबे ने यह जानकारी दी लेकिन तकनीकी कारणों से यह बताने में असमर्थता जताई कि संशोधन विधेयक में किस वर्ग को कितना आरक्षण का प्रावधान किया गया है.
हालांकी, जानकार बता रहे हैं आरक्षण के लिए आबादी को आधार बनाया गया है इसलिए आदिवासियों के लिए 32% आरक्षण का प्रावधान है. यही नहीं सभी वर्गों को मिलाकर प्रदेश में आरक्षण कुल मिलाकर 76% तक जा सकता है. कैबिनेट की बैठक खत्म होने के बाद सीएम बघेल ने बताया कि सरकार ने आने वाले 1 और 2 दिसंबर को विधानसभा के विशेष सत्र में पेश होने वाले आरक्षण विधेयक के मसौदे पर मंथन किया है. अनुसूचित जनजाति के अलावा अनुसूचित जाति पिछड़ा वर्ग और ईडब्ल्यूएस के आरक्षण पर भी बात हुई है. उच्च न्यायालय ने जिला कैडर का आरक्षण खारिज कर दिया था. पहले उसे एक आदेश के तहत दिया जाता था इसलिए जिला कैडर के आरक्षण को भी एक्ट में लाया जाएगा.
अब छत्तीसगढ़ में कुल आरक्षण हो जाएगा 76%
संशोधन विधेयक में आदिवासियों को 32% आरक्षण की व्यवस्था की गई है. इसी तरह अनुसूचित जाति के लिए 13% आरक्षण का प्रावधान है. ओबीसी का आरक्षण बढ़ाकर 27% प्रस्तावित है. सामान्य वर्ग के गरीबों ईडब्ल्यूएस को 4% आरक्षण दिया जा सकता है. इसी तरह विधानसभा में पेश किए जाने वाले संशोधन विधेयक में कुल आरक्षण करीब 76% होने की संभावना है.
हाईकोर्ट ने खारिज किया था 50% से ज्यादा आरक्षण जिसके बाद मचा बवाल
तत्कालीन प्रदेश सरकार ने 2012 में आदिवासी आरक्षण 20 से बढ़ाकर 32% कर दिया . अनुसूचित जाति का आरक्षण 16% से घटाकर 12% कर दिया. इसे हाईकोर्ट में याचिका के जरिए चुनौती दी गई . छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इसी साल 19 सितंबर को अपने फैसले में राज्य के आरक्षण अधिनियम के 2012 के संशोधन को रद्द कर दिया. उसके पहले तक एसटी 32 एससी 12 और ओबीसी 14 यानी कुल मिलाकर आरक्षण 58% था.
तमिलनाडु में लागू है 69 % आरक्षण
जानकार बताते हैं कि भूपेश सरकार ऐसा संकल्प भी ला सकती है जिसमें छत्तीसगढ़ के आरक्षण कानून को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र से आग्रह किया जाएगा. तमिलनाडु में 69% आरक्षण है और वहां ऐसा हो चुका है. वहां पिछड़ी जाति( बैकवर्ड कास्ट) को 30% से अधिकांश पिछड़ी जाति( मैक्सिमम बैकवर्ड कास्ट )को 20% प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 18 और अनुसूचित जनजाति को 1% आरक्षण दिया गया है.
जानकार यह मानते हैं इसको लागू करना इतना आसान नहीं छत्तीसगढ़ में आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस पर जमकर राजनीति होगी. छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव तथा संविधानविद देवेंद्र वर्मा ने बताया कि संशोधन विधेयक को विधानसभा में पारित कराने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन राज्यपाल से मंजूरी के बिना इसे कानून का स्वरूप नहीं दिया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के परिपेक्ष में राज्यपाल इस विधेयक को पुनर्विचार के लिए सरकार के माध्यम से विधानसभा को वापस लौटा सकती हैं. यही नहीं वह इसे राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भी भेज सकती हैं.