दक्षिण भारत में हिंदी विरोध को लेकर होने वाली राजनीति का असर अब आम जनता पर भी नजर आने लगा है. हालांकि, इस तरह के इक्का-दुक्का केस ही सामने आते हैं, लेकिन हाल ही में ऐसा एक वीडियो सामने आया है. जिसमें एक शख्स हिंदी बोलने वाले लोगों को ढूंढ-ढूंढकर पीट रहा है. वीडियो वायरल होने के बाद नेशनल क्राइम इंवेस्टिगेशन ब्यूरो (NCIB) ने अपने वेरिफाइड ट्विटर अकाउंट से इस वीडियो को शेयर कर मारपीट करने वाले शख्स की जानकारी मांगी है.
NCIB द्वारा शेयर किए गए वीडियो में नजर आ रहा है कि तकरीबन 35-40 साल का एक शख्स ट्रेन के जनरल डिब्बे में हिंदी बोलने वालों को ढूंढते हुए आता है. वह हिंदी-हिंदी चिल्लाता है और फिर एक 25-28 साल के लड़के के कपड़े खींचकर उसे पीटना शुरू कर देता है. उस लड़के से मारपीट करने के बाद वह सफेद शर्ट पहने करीब 18-20 साल के दूसरे लड़के से मारपीट शुरू कर देता है.
वह उस लड़के को बाल पकड़कर काफी देर तक पीटता रहता है. इस बीच वह एक करीब 21 से 23 साल के बीच के एक तीसरे लड़के को पीटना शुरू कर देता है. कुछ देर बाद वह यहां से आगे चला जाता है. ट्रेन में ही ऊपर की बर्थ पर बैठे किसी शख्स ने मारपीट करने वाले व्यक्ति का वीडियो रिकॉर्ड किया है, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
#शर्मनाक..😡
यह वीडियो दक्षिण भारत के किसी हिस्से का है। इसमें एक व्यक्ति हिंदी बोलने के कारण उत्तर भारतीयों के साथ ट्रेन में मारपीट कर रहा है।अगर, इस वीडियो या वीडियो में दिख रहें आरोपी के संबंध में आपके पास कोई जानकारी है तो हमारे व्हाट्सएप 09792580000 पर हमें उपलब्ध कराए। pic.twitter.com/dFagFRQTfr
— NCIB Headquarters (@NCIBHQ) February 16, 2023
दरअसल, दक्षिण भारत और खासतौर पर तमिलनाडु में हिंदी का विरोध काफी पुराना है. राज्य में हिंदी को लेकर विरोध पहली बार आजादी से पहले अगस्त 1937 में हुआ था. तब सी. राजागोपालाचारी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला लिया था. राजागोपालाचारी के इस फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था. ये आंदोलन लगभग 3 साल तक चला था.
इसके बाद दूसरे विश्व युद्ध में भारत को भी शामिल करने के ब्रिटिश सरकार के फैसले के खिलाफ राजागोपालाचारी ने इस्तीफा दे दिया था. बाद में सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाने वाले फैसले को वापस ले लिया था. आजादी के बाद 1950 में सरकार ने एक और फैसला लिया. ये फैसला स्कूलों में हिंदी को वापस लाने और 15 साल बाद अंग्रेजी को खत्म करने का था.
इससे एक बार फिर से हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू हो गया. हालांकि, बाद में एक समझौते के तहत हिंदी को वैकल्पिक विषय बनाने का फैसला कर विरोध को शांत कराया गया. हिंदी का विरोध बढ़ता ही जा रहा था. इस बीच 1959 में उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संसद में भरोसा दिलाया कि गैर-हिंदी भाषी राज्य अंग्रेजी का इस्तेमाल करना जारी रख सकेंगे.