कहते हैं, प्यार वो ताकत है जो कई जख्म भर देता है. जब हम प्यार में होते हैं तो जीने का तरीका बहुत बदल जाता है. अपने साथी के साथ हमकदम बनकर हम जिंदगी को एक खूबसूरत सपने की तरह जी रहे होते हैं. लेकिन कभी-कभी प्रेम या शादी में ऐसा भी मोड़ आ जाता है जब वही खूबसूरत रिश्ता दम तोड़ने लगता है. तब जब साथ निभाने की कसमें खाने वाले हाथ छुड़ाने लगते हैं तो संभलना मुश्किल लगने लगता है.
आज आधुनिक जमाने में इसे ब्रेकअप भी कहा जाता है. वहीं शादी या लिव-इन के रिश्ते में ये डिवोर्स या सेपरेशन कहलाता है. प्रेम इंसान को जितनी ऊर्जा देता है, ब्रेकअप उतना ही खाली कर देता है. ब्रेकअप या तलाक के बाद कई लोग तो समय के साथ संभलने लगते हैं. लेकिन, सबके लिए ये प्रैक्टिकल अप्रोच की तरह नहीं होता. कई लोगों के लिए ब्रेकअप एक बड़ा ट्रॉमा होता है. रिश्ते टूटने का दर्द उन्हें भीतर से तोड़ने लगता है. ये इंसान की पर्सनैलिटी को भी बदलकर रख देता है. आइए यहां जानते हैं कि क्या है ये सिंड्रोम और इस ट्रॉमा से खुद को बचाने का तरीका क्या है.
23 साल पहले सामने आया लव ट्रॉमा सिंड्रोम
इमोशनल ब्रेकडाउन के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने वालों में मनोचिकित्सक रिचर्ड रॉस का नाम सामने आता है. उन्होंने साल 1999 में लव ट्रॉमा सिंड्रोम का मॉडल विकसित किया जिसमें उन्होंने किसी रोमांटिक रिलेशनशिप के ब्रेकअप के बाद की स्थितियों के बारे में गहराई से बताया है. जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ अनिल शेखावत बताते हैं कि इस सिंड्रोम में डॉ रॉस ने कई ऐसे गंभीर लक्षणों के बारे में बताया जो कि लोगों में रोमांटिक रिलेशनशिप टूटने के बाद देखे गए. ये सिंड्रोम लोगों में लंबे समय तक रहता है, यही नहीं ये लोगों के सोशल, एजुकेशनल और प्रोफेशनल एरिया में परफॉर्मेंस को भी कम कर देता है.
लव ट्रॉमा सिंड्रोम के ये हैं चार पहलू
1. भावनाओं का उबाल-सा आना
इस सिंड्रोम के अध्ययन में लोगों में भावनात्मक उत्तेजना का भाव देखा गया. उन्हें हर वक्त लगता है जैसे तमाम सारे इमोशंस से एक साथ उनका डील करना मुश्किल हो रहा है. वो हर वक्त भावनाओं के ज्वार में घिरे रहते हैं.
2. उपेक्षा का भाव आना
इसमें इंसान में उपेक्षा का भाव भी बहुत ज्यादा होता है. उन्हें लगता है जैसे उन्हें हर तरह से उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है. एक अकेलापन, निराशा और दुख उन्हें घेर लेता है.
3. मानसिक अफवाह
इसे एक तरह की मानसिक अफवाह कहा जाता है. जब मन में ख्याल अचानक कभी बदलकर बहुत पॉजिटिव तो कभी बहुत नेगेटिव से हो जाते हैं.
4. भावनात्मक संवेदनहीनता का भाव आना
कई बार लोगों में भावनात्मक संवेदनहीनता का भाव भी आता है. इसे इमोशनल एनेस्थेसिया भी कहते हैं. उन्हें लगता है जैसे उनके भीतर सब खाली-खाली सा हो गया है. उनके भीतर अब कोई इमोशन नहीं रह गया है.
छह महीने से दो साल तक रहता है ब्रेकअप का असर
प्यार में विफलता कहें या ब्रेकअप… स्टडी में पाया गया है कि इसके परिणामों का असर आमतौर पर छह महीने से दो साल तक रहता है. इस दौर में सिंड्रोम ग्रस्त इंसान में ये लक्षण रहते हैं. डॉ अनिल शेखावत कहते हैं कि यदि इससे ज्यादा समय के लिए ये भाव रहें तो काउंसिलिंंग बहुत जरूरी हो जाती है.
फेलियर महसूस करना- ब्रेकअप के बाद व्यक्ति में एक फेलियर का भाव लंबे वक्त तक रहता है. उन्हें लगता है कि वो प्रेम में असफल हुए, आगे भी रहेंगे.
विपरीत लिंग के प्रति तिरस्कार- कई प्रेमी अपने विपरीत लिंग या जिससे वो प्रेम में पड़े उसमें पूरे लैंगिक तिरस्कार का भाव महसूस करते हैं.
सेपरेशन एंजाइटी से डिप्रेशन तक
डॉ शेखावत कहते हैं कि कई रिसर्च में पाया गया है कि जब रोमांटिक रिलेशनशिप में लोगों को खुद के प्रति रिजेक्शन का भाव मन में बैठ जाता है, उनमें सेपरेशन एंजाइटी लंबे समय तक रहती है. यही एंजाइटी धीरे धीरे हायर डिग्री के डिप्रेशन में बदल जाती है. लोगों में सेल्फ स्टीफ बहुत कम हो जाती है, उनके भीतर आत्मविश्वास की कमी आ जाती है. उन्हें लगता है कि दुनिया में कुछ भी उनके कंट्रोल में नहीं है. उनमें ये रिजेक्शन का भाव, छोड़े जाने का दुख एक विक्टिम होने का भाव पैदा कर देता है. ये एंजाइटी के लक्षणों को बढ़ाता है.
दिखते हैं ये लक्षण:
रोमांटिक रिश्ते का टूटना विशेष रूप से दुःख की आंतरिक अभिव्यक्ति जैसे रोना एक मुख्य लक्षण है.
इसके अलावा उनमें हताशा, निराशावाद, भावनात्मक परिवर्तन, दैनिक गतिविधियों को करने के लिए प्रेरणा की कमी होती है.
स्लीप साइकिल पूरी तरह डिस्टर्ब हो जाती है और भविष्य के प्रति निराशा का अनुभव होता है.
एक दुख और उदासी हर वक्त घेरे रहती है. इनमें सोचते रहने की क्रिया बढ़ जाती है.
फॉरगिवनेस थेरेपी: जरूरी है माफ करना
लव ट्रॉमा सिंड्रोम से उबरने के लिए फारगिवनेस थेरेपी के इस्तेमाल पर अध्ययन किया गया. कड़वाहट से टूटे किसी रिश्ते में अक्सर गुस्सा और आत्मसम्मान में ठेस से जूझ रहे लोग मन ही मन चिंता-तनाव से जूझते रहते हैं. ब्रेकअप या तलाक की स्थिति आने के पीछे खास कारण जैसे बेवफाई, वादे तोड़ने, इमोशनल हर्ट के लिए लोग एक दूसरे को माफ नहीं करते. डॉ शेखावत कहते हैं कि डॉ रॉस ने अपनी स्टडी में माफी को उपचार प्रक्रिया में खासतौर पर शामिल किया. इसे इस तरह से समझिए जब कोई ब्रेकअप के बाद मानसिक रूप से परेशान हो चुका व्यक्ति चिकित्सक के पास जाता है तो उसकी पहली शिकायत यही होती है कि उसके साथ गलत व्यवहार हुआ है.
खुद को भी माफ करो
वहीं, कुछ लोग रिश्ता टूटने पर खुद पर भी दोषारोपण करते हैं कि उन्होंने कुछ गलती की, इसीलिए रिश्ता टूटा. दोनों ही मामलों में व्यक्ति का द्वंद चल रहा होता है. इसलिए चिकित्सा में मूव ऑन यानी जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए माफी को खास तवज्जो दी गई. फिर वो माफी चाहे सामने वाले को बिना शर्त माफ करने की हो या फिर खुद को माफ करके अपने लिए सोचने की. डॉ शेखावत कहते हैं कि वैसे भी इस तरह की समस्या के लिए कोई विशेष और पेशेवर प्रोटोकॉल नहीं है जो मानसिक स्वास्थ्य की बहाली के लिए अन्याय की भावना और क्रोध को कम करने के लिए व्यवस्थित दृष्टिकोण प्रदान कर सके.
इसमें व्यक्ति को पहले क्षमा के भाव का अनुभव कराया जाता है. कैसे आप खुद को या दूसरों को क्षमा करके अपराधबोध और क्रोध की भावनाओं का एक बड़ा बोझ कम कर सकते हैं, जो आगे चलकर अवसाद की ओर ले जाता है. इसलिए क्षमा करना हरेक के लिए फायदेमंद है. इसके अलावा काउंसिलिंंग भी इस ट्रॉमा से बाहर निकालने में मदद करती है.
सामाजिक ढांचा भी जिम्मेदार
दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षिका व नारी विमर्शकार कहती हैं कि हमारे देश में ब्रेकअप या तलाक को सहजता से स्वीकार ही नहीं किया जाता. दो लोग यदि आपसी तालमेल न होने पर अलग होना चाहें तो किसी बीच के रास्ते की बात ही नहीं की जाती. ब्रेकअप या तलाक के बाद जैसे एक दुश्मनी, घृणा का भाव लेकर लोग जीते हैं. वो एक दूसरे को बर्बाद होते हुए देखना चाहते हैं. वहीं, विकसित देशों में एक ‘क्लोजर’ पर रिश्ते खत्म करने का चलन बढ़ते देखा गया है.
हमारे देश में गीत-संगीत और सिनेमा जगत में भी ब्रेकअप को बदले की भावना से जोड़कर प्रचार किया गया. ‘ठुकराके मेरा प्यार मेरा इंतकाम देखेगी’ ‘जा बेवफा जा, तुझे प्यार नहीं करना” वफा न रास आई तुझे वो हरजाई.. ऐसे कई गीत हैं जो बताते हैं कि कैसे ब्रेकअप में रिऐक्टर करना है. हालांकि सामाजिक पहलुओं में हमारे लिए कोई रिश्ता फिट न होने पर हमें शांति से उससे निकल जाना चाहिए, बशर्ते उस रिश्ते में कोई हिंसा या शोषण न हुआ हो. ऐसा होने पर भी कानून का सहारा लेकर अपनी जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर काम करते हुए आगे बढ़ना चाहिए.