फ्रांस के स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं के अबाया पहनने पर प्रतिबंध के बाद अब इस्लामिक देश मिस्र ने भी इसी तरह का एक कदम उठाया है. मिस्र ने स्कूलों में छात्राओं के नकाब (इस्लामिक ड्रेस जिससे आंखों को छोड़कर पूरा चेहरा ढक जाता है) पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया. मिस्र सरकार के इस फैसले से इस्लामिक देश का एक धड़ा बेहद नाराज है. सोशल मीडिया पर लोग सरकार के फैसले को गलत बताते हुए इसकी निंदा कर रहे हैं.
सोमवार को मिस्र के सरकारी अखबार अल-यूम ने खबर छापी थी कि मिस्र से शिक्षा मंत्रालय ने स्कूलों में नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया है. यह प्रतिबंध सरकारी और प्राइवेट, दोनों स्कूलों पर लागू होता है.
सरकार ने अपने फैसले में हिजाब को वैकल्पिक रखा है. यानी स्कूली छात्राएं चाहें तो हिजाब पहनकर स्कूल आ सकती हैं. हिजाब मुस्लिम महिलाओं के सिर और बालों को ढकने वाला एक पहनावा है जो पूरे चेहरे को कवर नहीं करता है.
हिजाब को वैकल्पिक रखने के फैसले पर मिस्र की सरकार की तरफ से कहा गया, ‘एक छात्रा अपनी मर्जी से या अपने माता-पिता के कहने पर हिजाब पहन सकती है. कोई अन्य व्यक्ति हिजाब पहनने के लिए किसी छात्रा पर दबाव नहीं बना सकता.’
सरकार के इस फैसले का सोशल मीडिया पर विरोध भी हो रहा है. लोग कह रहे हैं कि सरकार लोगों के निजी मामले और महिलाओं के अधिकारों में दखल दे रही है. ट्विटर (अब एक्स) पर जैनब नामक एक महिला यूजर ने लिखा, ‘महिलाएं जो चाहती हैं, उन्हें पहनने दें. हम महिलाओं के लिए एक आजाद और समान अधिकारों वाली दुनिया चाहते हैं जिसमें सरकार न बताए कि उन्हें क्या पहनना है और क्या नहीं.’
‘नकाब पहनना धार्मिक दायित्व’
जो लोग सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि नकाब पहनना उनका धार्मिक दायित्व है और इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए.
रिजवान कयानी नाम के एक यूजर ने लिखा, ‘नकाब कोई समस्या नहीं है बल्कि समस्या कुछ लोगों की अज्ञानता और असहिष्णुता है जो अपने विचारों को दूसरों पर थोपना चाहते हैं.’ वहीं, एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘लोग इस फैसले से नाराज हैं क्योंकि सरकार ने कोई कारण नहीं बताया है. यह एक अत्याचारी फैसला है जो लोगों के निजी जीवन पर प्रभाव डालता है.’
नकाब बैन के समर्थक क्या बोले?
वहीं, कुछ लोग नकाब पर प्रतिबंध का समर्थन भी कर रहे हैं. फैसले के समर्थकों का कहना है कि केवल कट्टर विचारधारा के लोग ही इससे प्रभावित होंगे.
अल-मसरी नाम के एक यूजर ने लिखा, ‘तालिबान और दाएश के समर्थकों को छोड़कर कोई भी सरकार के इस फैसले से नाराज नहीं है.’ वहीं, एक अन्य यूजर ने सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाए गए.
यूजर ने पूछा, ‘क्या नकाब पहनना स्कूलों की संख्या में कमी, पुराने फर्निचर और शिक्षकों की कमी का भी जिम्मेदार है?’
इससे पहले साल 2015 में, काहिरा विश्वविद्यालय ने अपने शिक्षिकाओं के नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसे चुनौती भी दी गई थी लेकिन साल 2020 के एक फैसले में प्रशासनिक अदालत ने इस फैसले को बरकरार रखा था.