नई दिल्ली : आज यानी 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रुप में मनाया जाता है। इसे पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 1994 में प्राथमिक बैठक के दिन घोषित किया गया था। आपको बता दें कि विभिन्न सरकारों और संगठनों द्वारा आदिवासियों के उत्थान के लिए लगातार कोशिश की जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक आज पूरी दुनिया में आदिवासियों की संख्या घटकर 37 करोड़ के आस पास हो गयी है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा की कहीं न कहीं मॉर्डन लोग ही आदिवासियों के अस्तित्व के पीछे पड़े हुए है क्योंकि हर साल न जाने कितने पेड़ और जंगलों को काटा जा रहा है इन पेड़ो को सिर्फ अपने फायदे के लिए काट कर हटाया जा रहा है। लोग अपने इस फायदे में यह भूल जाते हैं की हम आदिवासियों के घर यानी उनके जंगल का विनाश कर रहे है।
इसे पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 1994 में प्राथमिक बैठक के दिन यह घोषित किया गया था। 1982 में मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यकारी दल की आदिवासी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र की कार्यकारी पार्टी की पहली बैठक की गयी। ऐसा माना जाता है कि आदिवासी के कारण आज भी पर्यावरण और संस्कृति जिंदा है। इनके पसीने से आज भी कई बड़ी इमारतें चंद महिने में खड़ी हो जाती हैं। इन्हीं के अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करने के साथ ही उनके योगदानों को स्वीकार करने के लिए 9 अगस्त को पूरी दुनिया में आदिवासी दिवस मनाया जाएगा। इसमें उनकी लोक गाथाओं ,संस्कृति की हर जगह प्रस्तुति होंगी। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने भी इस आयोजन को धूमधाम से मनाने के लिए आदेश जारी कर दिए हैं।
भारत के झारखंड राज्य में 26 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। झारखंड में 32 आदिवासी जनजातियां रहती हैं, जिनमें बिरहोर, माल पहाड़िया, पहाड़िया, बिरजिया, असुर, सबर, कोरबा, खड़िया और बिरजिया जनजाति समूह हैं। देश की आजादी के वक्त झारखंड में आदिवासी जनजाति के लोगों की संख्या 35 फीसदी के करीब थी, जो कि 2011 की जनगणना के अनुसार, 26 फीसदी ही रह गई है।