बीते कुछ दिनों से चीन की सड़कें प्रदर्शनकारियों से पटी पड़ी हैं. चीन के कई छोटे-बड़े शहरों में सरकार विरोधी चिंगारी भड़क रही है. आलम यह है कि चीन के समर्थन में ये प्रदर्शन अमेरिका और यूरोपीय देशों तक फैल गए हैं. लेकिन इन प्रदर्शनों की एकमात्र वजह चीन की विवादित जीरो कोविड पॉलिसी नहीं है. चीन में बीते कुछ महीनों से ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने लोगों के बीच गहरा असंतोष पैदा किया है. सरकार के खिलाफ लोगों के भीतर विरोध की चिंगारी धीरे-धीरे सुलग रही थी, जिसे उरूमकी हादसे ने पूरी तरह से भड़का दिया.
चीन में सड़कों पर उतरे लोग सिर्फ जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ नहीं बल्कि चीन सरकार के विरोध में खड़े हैं. ये लोग राष्ट्रपति शी जिनपिंग के गद्दी छोड़ने की मांग कर रहे हैं. देश में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फेंकने पर अमादा हैं.
“Shanghai police have detained a prominent rights activist who called on a local official to resign over the citywide COVID-19 lockdown in April.
Ji Xiaolong has been incommunicado, believed detained by the Shanghai state security police, for 24 hours.”https://t.co/cyrPJoqobZ
— William Yang (@WilliamYang120) September 3, 2022
लॉकडाउन विरोधी एक्टिविस्ट की गिरफ्तारी
चीनी जनता में उबाल के प्रमुख कारणों में एक शंघाई में लॉकडाउन विरोधी एक कार्यकर्ता की गिरफ्तारी है. शंघाई पुलिस ने शहर में लगे लॉकडाउन का विरोध कर रहे और इसके लिए एक स्थानीय अधिकारी के इस्तीफे की मांग कर रहे एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया. जी शियाओलॉन्ग नाम के एक्टिविस्ट को दो सितंबर को हिरासत में लिया गया था.
दरअसल शियाओलॉन्ग ने सत्तारूढ़ सीसीपी पार्टी के सचिव ली कियांग को लगातार याचिकाएं लिखी थीं, जिनमें उन पर आंख मूंदकर सरकार के आदेशों का पालन करने के लिए उन्हें इस्तीफा देने को कहा था. बाद में एक्टिविस्ट की गिरफ्तारी से लोगों में गुस्सा था और लोग उनकी रिहाई के लिए लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
खाने की किल्लत बनी विरोध की वजह
चीन के गुइयांग शहर में लोगों ने लॉकडाउन के दौरान खाने की किल्लत की वजह से 11 सितंबर को प्रदर्शन करना शुरू किया था. यहां स्थानीय लोग आटे, चावल, अंडे और दूध जैसी जरूरी चीजों की किल्लत से जूझ रहे हैं. बच्चों को पर्याप्त खाना नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वजह से लोगों में भयंकर गुस्सा है. बता दें कि इस महीने की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में चीन पर कोविड प्रोटोकॉल के नाम पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाया गया था.
बिजली कटौती और छात्रों के लिए सुविधाओं की कमी
चीन की वुहान यूनिवर्सिटी के छात्रों ने 19 सितंबर को प्रदर्शन किया था. इसकी वजह लॉकडाउन लगे इलाकों में लगातार हो रही बिजली कटौती रहा. इस विद्रोह की चिंगारी उस रिपोर्ट के बाद भड़की, जिसमें वुहान यूनिवर्सिटी के एक वरिष्ठ मैनेजर पर गबन और बिजली चुराने के लिए 20 लाख युआन से अधिक का जुर्माना लगाने की बात कही गई थी.
बिजली विभाग के अधिकारी ने कहा कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कैंपस के छात्रावासों और कैंटीन के लिए आवंटित ट्रांसफॉर्मर्स का गलत इस्तेमाल किया. इससे छात्रों का गुस्सा भड़क गया. वुहान के लोग बिजली की बढ़ती कीमतों से भी परेशान थे.
BREAKING – The victims of a bus crash which killed 27 people and injured a further 20 in southwest China's Guizhou province were in an official government health vehicle and were being transported for COVID reasons. pic.twitter.com/EO6fQR3nWO
— 🔥 Himalaya News Voices (@himalayavoices) September 18, 2022
क्वारंटीन लोगों की दुर्दशा
चीन के गुइझू में सितंबर में सख्त लॉकडाउन के दौरान आइसोलेशन कैंप जा रही एक बस के दुर्घटनाग्रसत होने से 27 लोगों की मौत हो गई थी. गुइझू में सितंबर में सख्त लॉकडाउन लगा हुआ था और वहां पर प्रतिदिन कोरोना के 600 मामले सामने आ रहे थे. इससे इलाके में प्रदर्शन भड़क गया.
भूख और मेडिकल केयर की कमी
चीन के शिनजियांग जैसे अल्पसंख्यक इलाकों में भूख और मेडिकल केयर में लापरवाही से कई लोगों की मौत के मामले सामने आए. शिनजियांग में लॉकडाउन के दौरान 21 सितंबर को भूख और मेडिकल केयर में लापरवाही से 22 लोगों की मौत हो गई. इससे पहले सोशल मीडिया पर कई उइगर मुस्लिमों ने अपनी दशा उजागर की. यह चीन में विरोध की चिंगारी भड़कने का एक प्रमुख कारण बना.
#Zhengzhou is imploding. The #ZeroCovid policy of the CCP is pushing its people to the brink. The #Foxconn protests could have triggered a wide awakening!#China #XiJinping
— Saikiran Kannan | 赛基兰坎南 (@saikirankannan) November 25, 2022
फेमस ‘ब्रिज मैन’ प्रोटेस्ट
चीन के ‘ब्रिज मैन’ प्रोटेस्टस ने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं और यह पूरी तरह से जीरो कोविड पॉलिसी और लॉकडाउन से जुड़ा हुआ नहीं था. इसका मकसद सत्ता परिवर्तन था और सीसीपी की बर्खास्तगी से जुड़ा हुआ था.
दरअसल 13 अक्टूबर को एक शख्स मजदूर के भेष में बीजिंग में एक व्यस्तम हाईवे ओवरपास पर चढ़ गया था. उसने वहां दो सफेद बैनर लगाए, जिन पर लाल पेंट से नारे लिखे गए थे. शख्स ने लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कर स्कूल और ऑफिसों में नारेबाजी, तानाशाही हटाने और ‘हमें खाना चाहिए, हमें आजादी चाहिए, हम वोट करना चाहते हैं’ के नारे लगाए. शख्स के इस कदम से चीन में लोगों को सरकार के खिलाफ बिगुल बजाने का अदम्य साहस मिला.
फॉक्सकॉन प्रोटेस्ट
बीते 31 अक्टूबर को कोरोना वायरस फैलने के बाद झेंगझू फॉक्सकॉन प्लांट से दर्जनभर मजदूर भाग खड़े हुए थे. कंपनी ने इनकी जगह कुछ नई भर्तियां की थीं, जिन्हें अधिक मेहनताना और बोनस का वादा कर लाया गया था. लेकिन बाद में इन नए कामगारों को क्वांरटीन किए गए अन्य कामगारों के साथ रहने को कहा गया. इन्हें तय बोनस भी देने से इनकार कर दिया गया, जिससे एक नए विरोध प्रदर्शन की शुरुआत हुई.
फीफा वर्ल्ड कप भी विरोध का कारण बना
चीन में सीसीटीवी के जरिए वर्ल्ड कप मैचों का प्रसारण किया जा रहा है. 20 नवंबर को वर्ल्ड कप की ओपनिंग सेरेमनी के तुरंत बाद चीन के लोग यह देखकर हैरान थे कि वे देश में लॉकडाउन के साए में रह रहे हैं लेकिन पूरी दुनिया बेधड़क बिना मास्क के बाहर निकल रही है और जिंदगी के लुत्फ उठा रही है. यह चीन के लोगों में गुस्से का कारण बना.
चीन सरकार ने लोगों के गुस्से से बचने के लिए मैच के प्रसारण के दौरान ऑडियंस में बैठे लोगों को ब्लर करना शुरू कर दिया.
उरूमकी अग्निकांड
चीन के शिनजियांग में जीरो कोविड पॉलिसी के तहत अपार्टमेंट्स के एग्जिट और एंट्री प्वॉइन्ट को सील कर दिया गया था. शिनजियांग के उरूमकी में ऐसे ही एक अपार्टमेंट में 24 नवंबर को आग लग गई थी, जिसमें दस लोगों की मौत हो गई थी. ऐसा कहा गाज रहा है कि अपार्टमेंट सील होने की वजह से लोगों को बचकर बाहर निकलने में बड़ी दिक्कते आई और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इस मामले ने चीन में लंबे समय से चल रहे असंतोष को और बढ़ा दिया, जिसका नतीजा रहा कि लोग लॉकडाउन नियमों को धता बताते हुए सड़कों पर निकल आए और सरकार के विरोध में नारेबाजी करने लगे.