छत्तीसगढ़ शराब घोटाला : भूपेश-चैतन्य को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाले मामले में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके बेटे चैतन्य बघेल को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने आज सोमवार को दोनों की याचिकाओं पर सुनवाई करने से साफ इंकार कर दिया और अंतरिम राहत की उम्मीद लगाए बैठे पिता-पुत्र को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वह इन अर्जियों पर जल्द सुनवाई करे। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिका की प्रकृति पर सख्त रुख अपनाया। कोर्ट ने साफ कहा कि एक ही याचिका में पीएमएलए के प्रावधानों को चुनौती देना और साथ में जमानत जैसी व्यक्तिगत राहत की मांग करना न्यायिक प्रक्रिया के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा लगाई गई दो याचिकाओं में से एक पर आज सुनवाई से इनकार किया वही दूसरी को आगे और सुनवाई के लिए 6 अगस्त को सूचीबद्ध किया है। प्रथम याचिका जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बहस की उसमें कहा कि लगातार जांच प्रक्रिया जारी रखने के कारण टुकड़े टुकड़े में चालान पेश करने और 90 दिन में चालान पेश नहीं होने के कारण जमानत मिलने का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस याचिका पर खंडपीठ ने कहा कि इन आरोपों पर आधारित याचिका वे हाई कोर्ट के सामने प्रस्तुत करें।
वहीं दूसरी याचिका जिसमें मनी लांड्रिंग एक्ट की धारा 44 को चुनौती दी गई है में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को यह बताया गया है कि अब तक दिए गए फैसलों में किसी अपराध के बारे में एक बार चालान प्रस्तुत होने के बाद आगे की जांच करने के लिए मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी पड़ती है इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग फसलों में अलग-अलग नजीर दी गई है। जहां विनय त्यागी के मामले में यह कहा गया है कि बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के एक बार चालान होने के प्रस्तुत होने के बाद आगे की जांच नहीं की जा सकती वही कुछ मामलों में यह कहा गया है कि मजिस्ट्रेट की जांच की आवश्यकता नहीं है और जांच एजेंसी अपने विवेक पर आगे की जांच कर सकती है। इस विरोधाभास का छत्तीसगढ़ के मामलों में ईडी और आर्थिक अपराध जांच ब्यूरो मनमाना प्रयोग कर रहा है और तीन-तीन चार-चार साल से आपराधिक जांच को जारी रख जब मन में आता हैं तब किसी न किसी की गिरफ्तारी कर देता है। अत इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट को एक स्पष्ट नजीर देने की जरूरत है कि बिना मजिस्ट्रेट या जज के आदेश के किसी भी प्रकरण में एक बार चालान प्रस्तुत होने के बाद आपराधिक जांच अंतहीन तरीके से जारी नहीं रह सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने पिता-पुत्र की याचिका को लेकर न्याय व्यवस्था में समानता की बात भी उठाई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा: “जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति होता है, तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट आ जाता है। अगर हम हर मामले की सुनवाई यहीं करेंगे, तो अन्य अदालतों का क्या महत्व रहेगा? फिर आम आदमी कहां जाएगा?”
यह टिप्पणी इस बात की ओर इशारा थी कि उच्च पदों पर रहे लोग सीधे शीर्ष अदालत में पहुंचकर न्यायिक व्यवस्था की सीढ़ियों को नजरअंदाज करने की कोशिश करते हैं।
यह मामला छत्तीसगढ़ के शराब कारोबार से जुड़े कथित मनी लॉन्ड्रिंग घोटाले से जुड़ा है, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पीएमएलए के तहत कार्रवाई की है। इस केस में कई अधिकारियों और कारोबारी समूहों के नाम सामने आए हैं, जिनमें बघेल परिवार पर भी संदेह जताया गया है। इस केस को राजनीतिक और कानूनी दोनों ही नजरिए से बेहद संवेदनशील माना जा रहा है।