इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा-वृंदावन ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के प्रस्तावित कॉरिडोर की सरकारी योजना को हरी झंडी दे दी है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार का कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए दर्शन प्रभावित किए बगैर अपने धन से लोक व्यवस्था, जन स्वास्थ्य, सुरक्षा व जन सुविधा प्रदान करने का अपना वैज्ञानिक दायित्व पूरा करनेका आदेश दिया है.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि मंदिर के बैंक खाते में जमा 262.50 करोड़ रूपये को न छुआ जाये. इसके साथ ही मंदिर प्रबंधन में हस्तक्षेप न हो, किंतु कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन को भी कहा है कि किसी भी श्रद्धालु को दर्शन करने को प्रतिबंधित न करें. जिला प्रशासन आदेश का पालन सुनिश्चित कर अगली सुनवाई की तिथि 31जनवरी 24को अपनी रिपोर्ट पेश करें. कोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 में मिला धार्मिक अधिकार पूर्ण नहीं हैं. ये मौलिक अधिकार कुछ हद तक लोक व्यवस्था के अधीन हैं.
ऐसे में उचित अवरोध लगाया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि लोकहित का कार्य पंथनिरपेक्षता का क्रियाकलाप है. कोर्ट ने कहा है कि सरकार को तकनीकी विशेषज्ञ की सहायता से गलियों का अतिक्रमण हटाकर कोरिडोर योजना अमल में लाये. कोर्ट ने कहा है कि सरकार यह देखे कि दोबारा अतिक्रमण न हो. यह आदेश चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने अनंत कुमार शर्मा व अन्य की जनहित याचिका पर दिया है.
याचिका पर अधिवक्ता श्रेया गुप्ता, सेवायतों की तरफ से संजय गोस्वामी, राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र,अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल व मुख्य स्थाई अधिवक्ता कुणाल रवि आदि ने बहस की. गोस्वामियों की तरफ से याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की गई कहा यह निजी मंदिर है, सरकार को इसके प्रबंधन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, किंतु उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार मंदिर के बाहर कॉरिडोर योजना बनाती है तो उन्हें आपत्ति नहीं है. मंदिर के चढ़ावे को सरकार ना ले. अपने धन से खर्च करें.
गौरतलब है कि जनहित याचिका पर्व के समय होने वाली पांच लाख की भारी भीड़ व अव्यवस्था से श्रद्धालुओं की मौत की घटना को देखते हुए लोक व्यवस्था व सुविधाएं मुहैया कराने की मांग को लेकर दायर की गई है. कुंज गली व कुछ पौराणिक महत्व के मंदिरों को नुक्सान न पहुंचाने व पुरातात्त्विक महत्व को बरकरार रखने की भी कुछ सेवायतों की तरफ से दलील दी गई. 31 मार्च 1939 की कोर्ट डिक्री का भी हवाला दिया गया.
सरकार ने 20अगस्त 22 को अनियंत्रित भीड़ के कारण दो श्रद्धालुओं की मौत व कई के घायल होने की पूर्व डी जी पी सुलखान सिंह की अध्यक्षता में कमेटी गठित की और भीड़ प्रबंधन की योजना तैयार की. भीड़ प्रबंधन को लेकर हाईकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति सुधीर नारायण का एक आयोग भी गठित किया. सरकार ने मंदिर कोरिडोर योजना पेश की लेकिन वह मंदिर के चढ़ावे को खर्च करना चाहती थी. कोर्ट ने इसकी अनुमति नहीं दी है और कहा अपने खर्चे पर योजना पर अमल करें.
कोर्ट ने कहा कि मानव जीवन किसी की आपत्ति पर असुरक्षित नहीं छोड़ा जा सकता. भले ही निजी मंदिर हो. यदि श्रद्धालुओं की अनियंत्रित भीड़ दर्शन को आती है तो सरकार का दायित्व है कि वह लोक व्यवस्था व जीवन सुरक्षा के कदम उठाए.