बस्तर दशहरा की जोगी बिठाई रस्म पूरी, 9 दिनों तक 4 फीट के गड्ढे में उपवास और तपस्या करेंगे रघुनाथ

छत्तीसगढ़ : 75 दिनों तक चलने वाले प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की सबसे अनूठी जोगी बिठाई रस्म पूरी हो गई है। जगदलपुर के सिरहासार भवन में मंगलवार (23 सितंबर) को इस रस्म को अदा किया गया। इस रस्म में जोगी के रूप में एक युवा को 9 दिनों तक दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में बने सिरहसार भवन में जमीन के करीब 4 फीट नीचे पालथी लगाकर बिठाते हैं. दशहरा पर्व निर्विघ्न रूप से सम्पन्न हो सके इसके लिए यहां जोगी यहां बैठकर 9 दिनों तक कठिन तप करते हैं. यह रस्म मंगलवार की शाम सिरहसार भवन में विधि विधान से निभाई गई. इस रस्म को निभाने के लिए दशहरा समिति के सदस्य, मांझी चालकी, जोगी परिवार व पुजारी मौजूद रहे. मुंडाबाजा और बैंड बाजा की धुन के बाद पूजा अर्चना करके जोगी ने अपना स्थान ग्रहण किया है. तप साधना के दौरान जोगी 9 दिनों तक उपवास भी करते हैं. यह रस्म पाठजात्रा, डेरी गड़ाई और काछनगादी रस्म के बाद निभाई गई.

जोगी बिठाई रस्म यह रस्म करीब 600 सालों से चली आ रही है. इस साल भी जोगी की भूमिका आमाबाल गांव के रघुनाथ नाग निभा रहे हैं. रघुनाथ बताते हैं कि वो ये परंपरा पिछले पांच सालों से निभाते चले आ रहे हैं. उनसे पहले उनके भाई ये परंपरा निभाते थे. रस्म की शुरुआत मावली मंदिर में पुजारी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन करके हुई. इसके बाद देवी की पूजा-अर्चना और वहाँ रखी तलवार की विधिवत पूजा की गई. पूजा उपरांत यही तलवार लेकर जोगी सिरासार भवन पहुंचे और प्रार्थना के पश्चात गड्ढे में बैठकर तपस्या का संकल्प लिया. जोगी बिठाई रस्म को देखने के लिए और उसपर डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए इस बार इटली से भी 2 युवा यहां पहुंचे हैं.

जोगी बिठाई रस्म बस्तर दशहरा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें एक युवक हल्बा जनजाति के प्रतिनिधि के रूप में 9 दिनों तक निर्जल उपवास रखकर सिरासर भवन में योग मुद्रा में बैठता है. इसका उद्देश्य दशहरा पर्व को शांतिपूर्ण और निर्बाध रूप से संपन्न कराना है, और यह एक पौराणिक मान्यता से जुड़ा है. इस दौरान जोगी बस्तर की सुख-समृद्धि के लिए तपस्या करते हैं.

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