बस्तर दशहरा : महाअष्टमी पर निशा जात्रा रस्म पूरी, 12 बकरों की बलि चढ़ाकर तांत्रिक पूजा की गई

छत्तीसगढ़ : बस्तर दशहरे की महत्वपूर्ण रस्मों में से एक निशा जात्रा की रस्म शारदीय नवरात्रि की महाष्टमी पर पूरी हुई। मंगलवार (30 सितंबर) को इस रस्म में 12 बकरों की बलि देकर 617 साल पुरानी परंपरा निभाई गई। इस पर्व की सभी रस्में बेहद ख़ास होती हैं और इसे पूरे विधि विधान के साथ पूरा भी किया जा रहा है। दरअसल, रियासत काल से जो परंपरा चली आ रही है, उसे आज भी निभाया जा रहा है। अर्द्ध रात्रि को बस्तर राज परिवार के सदस्य निशा जात्रा बाड़ा पहुंचे और तांत्रिक पूजा कर अपने बस्तर की खुशहाली की कामना की।

नवरात्र के अष्टमी खत्म होने के बाद अर्ध रात्रि को निशा जात्रा की पूजा की जाती है। निशा जात्रा, बस्तर दशहरा की एक पारंपरिक और तांत्रिक रस्म है, जिसे अष्टमी की रात को किया जाता है और इसमें से रक्षा के लिए बलि प्रथा भी निभाई जाती है। मध्य रात्रि निशा जात्रा मंदिर में तांत्रिक मंत्री के माध्यम से मां खमेश्वरी की पूजा कर 12 बकरों की बलि देने का विधान है। इसके लिए 12 गांवों के राउत माता के लिए भोग प्रसाद तैयार करते हैं। यह पूजा विधान बस्तर की खुशहाली के लिए किया जा रहा है। बस्तर दशहरा के विभिन्न रस्मों में निशा जात्रा का विशेष महत्व है। इस विधान के तहत मध्य रात्रि में राज परिवार के सदस्य महुआ तेल से प्रज्वलित विशेष मशाल की रोशनी में अनुपमा चौक स्थित निशा जात्रा मंदिर पहुंचते हैं और लगभग एक घंटे तक तांत्रिक पूजा करते हैं। इस दौरान बारह बकरों की बलि दी जाती है और इनके सिरों को क्रमबद्ध रख दीप जलाया जाता है। साथ ही मिट्टी के बारह पात्रों में रक्त भर कर तांत्रिक पूजा अर्चना की जाती है।

प्रधान पुजरी का मानना है कि, यह परंपरा फैज साही से चली आ रहा है और राजा अपनी प्रजा की खुशहाली के लिए तांत्रिक पूजा कर देवी-देवताओ से आशीर्वाद मांगते हैं। राजपरिवार के सदस्य कमल चंद्र भंजदेव बताते हैं कि, दुर्गा अष्टमी की रात्रि 12 बजे के बाद निशा जात्रा होती है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। राजा अपनी प्रजा के सुख शांति और तरक्की के लिए पूजा करता है। इस मे कोई बाधा न पहुंचे इसके लिए मां मावली, दंतेश्वरी के सिंह द्वार के लिए बकरों की बलि चढ़ाया जाता है। बस्तर दशहरा पर्व में ही साल में एक बार तंत्र-मंत्र की पूजा स्वयं राजा करता है। जिससे बस्तर हमेशा आगे बढे और कोई आपदा बस्तर में न आ पाए। इस खास रस्म को पूरा करने राज परिवार के साथ दसहरा से जुड़े सभी लोग उपस्थित रहे।

 

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