यहां शादी के पहले दिन दुल्हन को पिलाई जाती है शराब, खुद ससुराल वाले परोसते हैं गिलास

राजस्थान में संस्कृति और परंपराओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है, वहां शादियां केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि रीति-रिवाजों और सामाजिक बंधनों का उत्सव होता है. विशेष रूप से राजपूती शादियों में एक ऐसी रस्म है, जो अपनी अनोखी प्रकृति के कारण चर्चा में रहती हैप्याला या मनवार रस्म. इस रस्म में दुल्हन का स्वागत शराब से किया जाता है, जिसे सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. गैर-शराबी परिवार इस रस्म को कोल्ड ड्रिंक या जूस के साथ निभाते हैं, जिससे यह परंपरा समकालीन संवेदनाओं के साथ भी तालमेल बिठाती है

प्याला रस्म, जिसे मनवार रस्म भी कहा जाता है, राजपूत समुदाय की शादियों में एक विशेष स्थान रखती है. इस रस्म में दुल्हन के ससुराल पहुंचने पर उसे एक प्याला या गिलास में शराब पेश की जाती है. यह शराब, जो अक्सर स्थानीय रूप से बनी देसी शराब या व्हिस्की होती है, परिवार की ओर से स्वागत और शुभकामनाओं का प्रतीक होती है. कुछ परिवारों में दुल्हन को केवल प्याला छूने या उसका तिलक करने को कहा जाता है, जबकि अन्य में परिवार के बुजुर्ग इस प्याले को ग्रहण करते हैं. यह रस्म ना केवल दुल्हन का स्वागत करती है, बल्कि परिवार के बीच एकजुटता और खुशी का संदेश भी देती है.

यह रस्म सभी राजपूती परिवारों या राजस्थान के सभी क्षेत्रों में नहीं अपनाई जाती. उदयपुर, जोधपुर और जयपुर जैसे क्षेत्रों में यह रस्म अधिक प्रचलित है, खासकर उन परिवारों में जो परंपराओं को कड़ाई से मानते हैं. वहीं, बीकानेर और जैसलमेर जैसे कुछ क्षेत्रों में यह रस्म कम देखी जाती है और कई परिवार इसे पूरी तरह छोड़ देते है. गैर-शराबी परिवारों में इस रस्म को शीतल पेय, नारियल पानी या फलों के रस के साथ निभाया जाता है. यह लचीलापन दर्शाता है कि राजस्थान की परंपराएं समय के साथ बदलाव को स्वीकार कर रही है.

सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषज्ञों का मानना है कि प्याला रस्म की उत्पत्ति राजपूतों की योद्धा संस्कृति से जुड़ी हो सकती है. प्राचीन काल में शराब को साहस, उत्साह और उत्सव का प्रतीक माना जाता था. युद्ध से लौटने वाले योद्धाओं का स्वागत शराब से करना आम था और संभवतः यही परंपरा शादियों में शामिल हो गई. , आधुनिक समय में शराब के सेवन को लेकर बढ़ती जागरूकता और सामाजिक बदलावों के कारण कई परिवार इस रस्म को संशोधित कर रहे हैं जोधपुर के एक राजपूत परिवार ने बताया कि वे अब इस रस्म में गुलाब जल या शरबत का उपयोग करते हैं.

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