दिल्ली के अस्पताल पर लगा एक करोड़ 50 लाख का जुर्माना, IVF के दौरान सीमेन सैंपल मिक्स-अप का आरोप

राष्ट्रीय

दिल्ली में एक चौंका देने वाला मामला सामने आया है. यहां एक प्राइवेट हॉस्पिटल में IVF प्रोसीजर के दौरान डॉक्टरों ने एक महिला को सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) के जरिए गर्भ धारण में मदद के लिए पति के बजाय किसी दूसरे व्यक्ति का स्पर्म डाल दिया. इस मामले में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) ने हॉस्पिटल और संबंधित डॉक्टरों पर रिप्रोडक्शन प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ी के लिए 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. इसी के साथ कंज्यूमर कमीशन ने फैसला देते हुए एआरटी क्लीनिकों के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां भी कीं. कोर्ट ने कहा कि ऐसे क्लीनिकों की मान्यता की जांच की जानी चाहिए. उसने कहा कि नवजातों का डीएनए प्रोफाइल अनिवार्य रूप से जारी किए जाने की जरूरत है.

डीएनए प्रोफाइल टेस्ट से हुई जानकारी
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक दंपति 15 साल पहले जुड़वां बच्चों के माता-पिता बने थे. महिला की शिकायत के मुताबिक, आईवीएफ प्रक्रिया से गुजर रही महिला को सीमेन का एक नमूना दिया गया जो उसके पति का नहीं था. जानकारी के मुताबिक दंपति को इस गड़बड़ी का पता 2008-09 में डीएनए प्रोफाइल टेस्ट के बाद हुआ था. टेस्ट में पता चला कि महिला का पति उसके जुड़वां बच्चों का जैविक पिता नहीं है. जुड़वा बच्चों में से एक का ब्लड ग्रुप एबी पॉजिटिव था, जबकि माता का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव और पिता का ओ नेगेटिव था. आयोग ने कहा, “यह स्पष्ट है कि आईसीएसआई (इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन) या आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान लापरवाही के कारण ऐसी दुर्घटना हुई.”

आयोग ने ये टिप्पणियां भी कीं
– एनसीडीआरसी के डॉ. एसएम कांतिकर ने 16 जून को एक आदेश में कहा कि इस लापरवाही के कारण माता-पिता और उनके बच्चों के बीच आनुवंशिक संबंध टूट गया है. बच्चों के पिता ने सर्विस में लापरवाही के कारण 2 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा था. उन्होंने कहा गया था कि इससे “भावनात्मक संकट, पारिवारिक कलह और आनुवंशिक रूप से विरासत में मिली बीमारियों का डर पैदा हुआ.

– डॉ. कांतिकर ने कहा- “हमारे देश में एआरटी केंद्रों की बेतहाशा वृद्धि के कारण निर्दोष इनफर्टाइ दंपतियों का गलत इलाज हो रहा है. विशेषज्ञ को ओव्यूलेशन की फिजियोलॉजी के साथ-साथ प्रजनन और स्त्री रोग विज्ञान के बारे में सही ज्ञान होने की जरूरत है, नहीं तो गलत प्रोटोकॉल का उपयोग हानिकारक हो सकता है. यह समझने की जरूरत हैं कि इनफर्टिलिटी के मरीज भावनात्मक और आर्थिक रूप से तनावग्रस्त होते हैं.

भुगतान में देरी पर 8% ब्याज का लगेगा जुर्माना
– उचित और पर्याप्त मुआवजे पर आए सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों को आधार बनाते हुए आयोग ने एक निजी अस्पताल और इसके अध्यक्ष और निदेशक को संयुक्त रूप से मुआवजे के रूप में 1 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया. साथ ही उन्हें एनसीडीआरसी के उपभोक्ता कानूनी सहायता खाते में 20 लाख रुपये जमा करने के लिए भी कहा गया है.

– इसके अलावा इस मामले की तीन अन्य आरोपियों, जिनमें अस्पताल के डॉक्टर भी शामिल थे, को निर्देश दिया गया कि हर कोई 10 लाख रुपये का भुगतान शिकायतकर्ताओं को करें. आयोग ने कहा कि अगर छह हफ्ते के भीतर मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया तो हर साल 8% ब्याज का जुर्माना लगाया जाएगा.

– साथ ही कहा कि मुआवजे के रूप में एकत्र किए गए 1.3 करोड़ रुपये जुड़वां बच्चों के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) के रूप में जमा किए जाएंगे, जिसमें दोनों 50% की हिस्सेदारी के हकदार होंगे. अदालत ने कहा, माता-पिता को बच्चों की देखभाल और कल्याण के लिए ब्याज की रकम लेने की अनुमति है.