आतंकी शाहीन के 7 बैंक खातों की डिटेल मिली, 7 साल में 1.55 करोड़ रुपयों का लेनदेन

आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के फरीदाबाद माड्यूल की अहम सदस्य डॉ. शाहीन के बैंक खातों में सात साल में 1.55 करोड़ का लेनदेन हुआ है। जांच में जुटी एजेंसियां रुपयों के आने और जाने का माध्यम खंगाल रहीं हैं। एजेंसियां विदेशी फंडिंग की जांच के शक में खातों की पड़ताल कर रहीं हैं। मामले की जांच में जुटी एजेंसियां इस धनराशि के आने और जाने के माध्यमों के बारे में जानकारी जुटा रहीं हैं। जांच एजेंसियों को डॉ. शाहीन के पास सात बैंक खाते होने की जानकारी मिली थी। इनमें से तीन बैंक खाते कानपुर, दो-दो लखनऊ और दिल्ली में हैं। इनमें से कुछ निजी और कुछ सरकारी बैंकों में हैं। डॉ. शाहीन के बैंक खातों की पड़ताल में वर्ष 2014 में नौ लाख, 2015 में छह लाख, 2016 में 11 लाख, 2017 में 19 लाख के बड़े ट्रांजेक्शन मिले हैं। वहीं, डॉ. आरिफ के भी तीन बैंक खाते मिले हैं। इन खातों में हुए ट्रांजेक्शन की भी पड़ताल की जा रही है।

डॉ. शाहीन और डॉ. आरिफ का नाम सामने आने के बाद से जांच एजेंसियां शहर में स्लीपर सेल का पता लगाने में जुट गईं हैं। एजेंसियों का मानना है कि युवाओं को आतंक से जोड़ने से पहले उन्हें धर्म के नाम बरगलाया जाता है। माइंड वॉश कर ऐसे युवाओं तक आतंकी संगठनों का संदेश पहुंचाया जाता है जिसे वह कर गुजरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। संवेदनशील जिला होने के नाते कानपुर कई बार चर्चा में रहा है। ऐसे में यहां पर स्लीपर सेल सक्रिय होने की आशंका को देखते हुए जानकारी जुटाई जा रही है।

धमाके के बाद डॉ. शाहीन और डॉ. आरिफ के पकड़े जाने के बाद खुफिया एजेंसियों का मानना है कि कई संदिग्ध अपने पुराने सिम का इस्तेमाल कर नया सिम ले सकते हैं। ऐसे में सिम खरीदने वालों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। एजेंसियाें ने 10 नवंबर के बाद बिके सिमों की डिटेल जुटाना शुरू कर दिया है। इनके संदिग्ध महसूस होने पर सत्यापन कराया जाएगा। आतंकी घटना में शामिल डॉ. शाहीन की काली करतूतों का असर उसके 18 और 15 वर्षीय दो बेटों पर न पड़े इसके लिए पिता उसे बच्चों से छिपाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कक्षा 12 व नौ में पढ़ने वाले बच्चों को कुछ दिन स्कूल से छुट्टी दिलाने के अलावा बच्चों की सोशल मीडिया और टीवी से भी दूरी बना दी ताकि बच्चों को अपनी मां की कोई जानकारी न मिल सके।

बच्चों के पिता डॉ. जफर हयात बच्चों की परवरिश को लेकर इस कदर परेशान हैं कि वो खुद बीमार पड़ गए। अस्पताल से छुट्टी भी ले ली। साथ काम करने वाले डॉक्टरों व स्टाफ का भी कहना है कि वे मिलनसार हैं। भले ही वो पत्नी से अलग हो गए हों लेकिन इस घटना का असर उनके जीवन और स्वास्थ्य दोनों पर पड़ा है। वह ज्यादातर बच्चों को घर पर ही रख रहे हैं। न्यूज चैनल और अखबार पढ़ने से भी बचा रहे हैं।

कानपुर देहात की सीएचसी में तैनात की भी जांच तेज हो गई है। वह 2013 में डॉ. शाहीन के साथ ही लापता हो गए थे। तीन साल बाद बिना कारण बताए ही 2016 में नौकरी जॉइन कर ली थी। वह एनाटॉमी विभाग में थे। तीन साल उन्होंने कहां गुमनामी काटी इसकी जांच चल रही है। इसके साथ ही एक जगह से इस्तीफा दिए बिना उन्हें दूसरी जगह नौकरी कैसे मिल गई। यह भी जांच में शामिल किया गया है।

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