वाराणसी में महाराष्ट्र जैसे गणेश उत्सव की धूम, मुंबई से आते हैं ‘लालबाग के राजा’

वाराणसी : काशी विश्वनाथ की नगरी में धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया जा रहा है. गणेश उत्सव आमतौर पर महाराष्ट्र के लिए जाना जाता है, लेकिन काशी में रहने वाले मराठी समाज के लोग गणेश उत्सव को अलग ही अंदाज में मनाते हैं. कुछ ऐसे मराठी परिवार हैं, जिनका गणेश उत्सव मुंबई तक प्रचलित है. शारदा भवन का लगभग 97 वर्ष पुराना गणेश उत्सव और लालबाग के राजा की हूबहू प्रतिरूप वाली प्रतिमा की चर्चा हर तरफ होती है. आइये बनारस के इन दो गणेश उत्सवों की भव्यता और परंपरा से रूबरू होते हैं. वाराणसी की संकरी गली में रहने वाले अगस्त कुंडा मोहल्ले के मराठी परिवार आज भी अपनी असली जड़ों से जुड़े हुए हैं. यहां पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय से रिटायर्ड हुए विनोद राव पाठक अपने परिवार के साथ रहते हैं. लगभग 175 साल पहले महाराष्ट्र के बिल्वंड गांव से काशी आकर बसे इस मराठी परिवार ने अपनी जड़ों को काशी में इस तरह से फैलाया है कि आज भी गणेश उत्सव की भव्यता महाराष्ट्र की तर्ज पर काशी में दिखाई देती है. लगभग 97 साल पहले इस गणेश उत्सव को शुरू किया गया. जिसमें गणेश प्रतिमा मुंबई के सिद्धिविनायक की तरह स्थापित होती है.
पांच दिनों के आयोजन की भव्यता बिल्कुल अलग होती है. संस्कृति और परंपराओं का संगम देखने को मिलता है. अलग-अलग पंडितों के साथ बसंत पूजा और विविध गणेश उत्सव के कार्यक्रमों के साथ कवि सम्मेलन और विद्वानों के सम्मान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है. विनोद राव पाठक बताते हैं कि काशी में गणेश उत्सव अलग-अलग इलाकों में होता है. हम लोग भी जब 175 साल पहले काशी आए तो इसे पहले घर में ही शुरू किया, लेकिन बाद में इसकी भव्यता बढ़ती गई. मराठी परिवार हमारे साथ जुड़ते गए. 97 साल से लगातार यह कार्यक्रम करते आ रहे हैं. मुंबई के लालबाग के राजा की हूबहू प्रतिमा काशी में भी विराजमान होती है. महाराष्ट्र के सांगली जिले से आकर काशी में बसे मराठी व्यापारियों ने गणेश उत्सव की शुरुआत की. घर-घर बैठने वाले गणपति को एक ही जगह सार्वजनिक रूप से पूजने का प्लान बनाया और महाराष्ट्र से ही प्रतिमा मंगवाने लगे. मुंबई के लालबाग के राजा जैसी छोटी प्रतिमा काशी में विराजमान होती है. 17 सालों से यह कार्यक्रम काशी में चल रहा है और लालबाग के राजा का एक भव्य और अलौकिक रूप काशी के लोगों को भी देखने को मिलता है.
इस आयोजन के संरक्षक का कहना है कि पांच दिनों तक होने वाले आयोजन में अंतिम दिन जब विसर्जन होता है तो वह और भव्य होता है. हम महाराष्ट्र से 100 कलाकारों को बुलाते हैं. महाराष्ट्र में होने वाले विसर्जन की तर्ज पर ही ढोल ताशा और महाराष्ट्र के पृष्ठभूमि पर किए जाने वाले नृत्य को करते हुए चलते हैं.