खरोरा में मशरूम की खेती के नाम पर 52 मजदूरों को बना रखा था बंधक..जाने पूरा मामला

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के खरोरा में 52 से अधिक लोगों को 6 महीने तक बंधक बनाकर रखने और उनसे मजदूरी कराने का एक गंभीर मामला सामने आया है। बताया गया है कि इन लोगों को बंधक बनाकर मशरूम उगाने के काम में लगाया गया था। इस मामले की सूचना मिलने के बाद जिला प्रशासन, पुलिस व बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाले संगठन के लोग मौके पर पहुंचे और वहां से बंधकों की रिहाई करवाई गई। इन लोगों को रायपुर के इंडोर स्टेडियम में लाकर रखा गया है। वहां इनके स्वास्थ्य की जांच की जा रही है

बताया गया है कि, इस मामले की प्रारंभिक सूचना इस रूप में जिला प्रशासन रायपुर को मिली थी कि खरोरा गांव में एक स्थान पर बच्चों को बंधक बनाकर उन्हें मशरूम उत्पादन संबंधी काम में लगाया गया है। ये लोग करीब 6 महीने से बंधक थे। इस सूचना पर जिला प्रशासन के अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग में बच्चों से संबंधित कामकाज देखने वाली एक कमेटी और बच्चों के हितों की रक्षा में काम करने वाले एक स्वयंसेवी संगठन को सूचना देकर बुलवाया गया। इस दल ने खरोरा जाकर जांच पड़ताल की। गुरुवार को महिला-बाल विकास विभाग ने रायपुर के खरोरा इलाके में एक मशरूम फैक्ट्री से 97 मजदूरों को फैक्ट्री मालिक के चंगुल से छुड़ाया है। ये मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के रहने वाले हैं। इनमें महिलाएं, पुरुष और 10 दिन तक के बच्चे भी शामिल हैं। मामला खरोरा थाना क्षेत्र का है। अधिकारियों के मुताबिक रेस्क्यू किए गए लोगों में यूपी के भदोही जिले से 30, जौनपुर जिले से 38 और बनारस से 5 लोग हैं। बाकी बिहार और झारखंड के रहने वाले हैं। एक मजदूर ने बताया कि करीब 5 महीने पहले भोला नाम के ठेकेदार उन्हें जौनपुर उत्तरप्रदेश से लेकर आया। कहा गया कि बैठे-बैठे मशरूम पैकिंग का काम करना है। 10 हजार रुपए महीने के मिलेंगे।

जब वह इस फैक्ट्री में पहुंचे तो उन्हें मशरूम काटने और बोझा ढोने का काम करवाया गया। उन्हें 16 से 18 घंटे काम करवाया गया। बीच में अगर मजदूर सोने चले जाते तो उन्हें ठेकेदार मारपीट कर नींद से उठाता था। मजदूरों को कमरे में बंद करके रखा जाता था। जिससे कि भाग न पाए। मजदूरों ने बताया कि उन्हें शाम 4 बजे भोजन दिया जाता था। खाने में चावल और दाल होता था। लेकिन वह कच्चा होता था। उसे ठीक से पकाया नहीं जाता था। जब मजदूर विरोध करते तो उन्हें डरा धमकाकर चुप करा दिया जाता था।

उन्हें बाहर निकल कर कोई भी चीज खाने की इजाजत नहीं थी। फैक्ट्री का दरवाजा हमेशा बंद रहता था। मजदूर जब लंबे समय तक प्रताड़ित हो गए। तब इनमें से कुछ लोग चुपचाप रात को निकलकर भागे और बाहरी लोगों से मदद मांगी।

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