गरीब हिंदुओं पर अत्याचार बंद करो, टोपी-दाढ़ी वालों को मारकर दिखाओ, नितेश राणे का माणसे कार्यकर्ताओं को अल्टीमेटम

महाराष्ट्र में भाषा को लेकर एक नया विवाद उभरा है जो अब तेज़ी से गरमा चुका है। महाराष्ट्र, बेंगलुरु और दक्षिण भारत के कुछ अन्य हिस्सों से हिंदी बोलने वालों के खिलाफ हिंसा की खबरें सामने आ रही हैं। हालांकि, महाराष्ट्र में यह भाषा का मुद्दा पहले से ही तूल पकड़ चुका है। राज ठाकरे की माणसे पार्टी के कार्यकर्ता अक्सर हिंदी बोलने वालों के साथ बदसलूकी करते हुए पाए जाते हैं। अब सोशल मीडिया पर एक और वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें माणसे पार्टी के कार्यकर्ता एक हिंदी बोलने वाले व्यक्ति को पीटते हुए कहते हैं, महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी बोलना ज़रूरी है। यह घटना मीरा रोड की है, जहां माणसे पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एक हिंदी बोलने वाले दुकानदार को पीटा। पीटे गए व्यक्ति का नाम बाबूलाल चौधरी था, जो मीरा रोड में मिठाई की दुकान चलाता था। इस घटना के अगले दिन, व्यापारी संघटन ने विरोध प्रदर्शन किया और मीरा रोड में बंद का ऐलान किया।

इस घटना के बाद महाराष्ट्र भाजपा के विधायक नितेश राणे का बयान सामने आया, जिसने राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है। जब नितेश राणे से इस मुद्दे पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “एक हिंदू को मारा गया है। अगर इन माणसे के कार्यकर्ताओं में हिम्मत है तो ये नल बाजार या मोहम्मद अली रोड पर किसी टोपी वाले या दाढ़ी वाले व्यक्ति को मार कर दिखाएं। तब इनकी असली दादागिरी सामने आएगी। इनको तो केवल एक गरीब हिंदू पर दादागिरी दिखाने की हिम्मत होती है। अगर हिम्मत है तो इन्हें उन लोगों के साथ भी ऐसा करना चाहिए।”

भाषा का यह विवाद अब महाराष्ट्र की राजनीति को दो हिस्सों में बांट चुका है। एक पक्ष हिंदी बोलने के अधिकार की बात कर रहा है, जबकि दूसरा पक्ष मराठी भाषा को अस्मिता और गर्व के प्रतीक के रूप में देख रहा है। माणसे के कार्यकर्ता आए दिन हिंदी बोलने वालों को परेशान करते हैं, लेकिन मराठी बनाम हिंदी का यह विवाद और भी उग्र हो सकता है, खासकर अब जब महाराष्ट्र में नगर निगम चुनाव होने वाले हैं। यह भी माना जा रहा है कि इस भाषा के विवाद को वोट बैंक की राजनीति के तहत भड़काया जा रहा है। महाराष्ट्र के आगामी चुनावों को देखते हुए यह मुद्दा राजनीतिक फायदे के लिए उछाला जा रहा है, ताकि असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाया जा सके। अब यह देखना होगा कि भाषा विवाद आगे बढ़ेगा या फिर शांति की दिशा में कुछ कदम उठाए जाएंगे।

 

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