Nobel Prize 2025 : जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों को केमिस्ट्री का नोबेल

इस साल केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार सुसुमु कितागावा (जापान), रिचर्ड रॉबसन (ऑस्ट्रेलिया) और उमर एम. याघी (अमेरिका) को मिला है। स्वीडन की रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने बुधवार को इसका ऐलान किया। इन्होंने ऐसे एटम बनाए हैं जिनमें बड़े-बड़े खाली हिस्से होते हैं, जिनसे गैस और अन्य रासायनिक पदार्थ आसानी से गुजर सकते हैं। इन संरचनाओं को मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स (MOF) कहते हैं। इसमें ऐसे क्रिस्टल बनते हैं, जिनमें बड़े खाली हिस्से होते हैं। ये खास तरह से डिजाइन किए जा सकते हैं ताकि वे किसी खास चीज को कैप्चर कर सकें या स्टोर कर सकें। इनका इस्तेमाल रेगिस्तानी हवा से पानी इकट्ठा करने, प्रदूषण हटाने, कार्बन डाइऑक्साइड को साफ करने, जहरीली गैसों को स्टोर करने या रासायनिक क्रियाएं तेज करने में किया जा सकता है। विजेताओं को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (10.3 करोड़ रुपए), सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलेगा। यह प्राइज मनी इन तीनों के बीच बंटेगी। पुरस्कार 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में दिए जाएंगे।

ओमर याघी ने अमेरिका जाकर नई तरह की रासायनिक डिजाइनिंग शुरू की। उन्होंने 1995 में पहली बार मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOF) शब्द का इस्तेमाल किया और 1999 में MOF-5 नाम से फेमस फ्रेमवर्क बनाया। यह बहुत स्थिर और बहुत विशाल अंदरूनी सतह वाला पदार्थ था। सिर्फ कुछ ग्राम MOF-5 में एक फुटबॉल मैदान जितना क्षेत्रफल समा सकता है। बाद में उन्होंने MOF की कई किस्में बनाईं, जो गैसों को पकड़ने और स्टोर करने में बेहद कारगर रही। उनकी टीम ने कामयाबी से एरिजोना की रेगिस्तानी हवा से पानी स्टोर किया। रात में MOF हवा से नमी सोखता है और सुबह सूरज की गर्मी से वही नमी पानी में बदल जाती है।

1970 के दशक में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न विश्वविद्यालय में रॉबसन छात्रों को अणु बनाने की क्लास पढ़ा रहे थे। उन्होंने लकड़ी की गेंदों (एटम) और डंडियों (बॉन्ड) से मॉडल बनाए। उन्हें अचानक एहसास हुआ कि अगर असली अणुओं में भी ऐसे ही “जुड़ने के पैटर्न” को समझ लिया जाए, तो नई तरह की आणविक इमारतें (molecular structures) बनाई जा सकती हैं। 1989 में उन्होंने तांबे (Copper) के आयनों और एक चार-भुजाओं वाले कार्बनिक अणु को जोड़कर एक नई रचना बनाई यह क्रिस्टल जैसी संरचना थी, लेकिन अंदर खाली जगहें थीं। यही था पहला “मेटल-ऑर्गेनिक नेटवर्क” जैसा विचार। यह रचना थोड़ी कमजोर थी, पर इससे रसायनशास्त्रियों में एक नई सोच जागी कि मॉलिक्यूल्स से ‘इमारतें’ बनाई जा सकती हैं।

1990 के दशक में जापान के किंदाई यूनिवर्सिटी में कितागावा ने भी ऐसे ही प्रयोग शुरू किएशुरू में उनके बनाए ढांचे बहुत कमजोर थे और फंडिंग एजेंसियों ने उन्हेंबेकारकहा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 1997 में उन्होंने पहले स्थिर MOFs बनाए, जो सूखने के बाद भी टूटते नहीं थे और उनमें मीथेन और ऑक्सीजन जैसी गैसें भरकर निकाली जा सकती थीं। उन्होंने यह भी समझाया कि MOFs की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे ‘लचीले’ हो सकते हैं जैसे फेफड़े हवा लेते और छोड़ते हैं। इसलिए इन्हें “सॉफ्ट मटेरियल्स” कहा गया।​​​​​​

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