रूपल गाँव में घी की नदियां… वरदायिनी माता की पल्ली पर चढ़ाया गया 20 करोड़ से ज्यादा का घी

गुजरात : गांधीनगर के रूपल गांव में घी की नदियां बही , यह घी तकरीबन 20 करोड़ रुपये का हुआ , ऐसा होगा पांडव काल से शुरू हुई उस परंपरा को जीवित रखने के लिए जिसे खुद पांडवों ने शुरू किया था, दरअसल यहां वरदायिनी माता का की पल्ली भरी जाती है, हर नवरात्रि के नौवें दिन लाखों लोग दूर-दूर से पल्ली के दर्शन करने आते हैं. माता की पल्ली यानी रथ मंदिर से निकलकर गांव के 27 चौकों से होकर गुजरा . इस दौरान पल्ली पर लाखों लीटर घी का अभिषेक किया जाता है. गांव में घी की नदियां बहती नजर आती . रूपल वरदायिनी माता मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी ने बताया, “हर साल माता की पल्ली पर 20 करोड़ रुपये से ज़्यादा का घी चढ़ाया जाता है. हर साल लाखों श्रद्धालु पल्ली के दर्शन के लिए आते हैं. पल्ली में चढ़ाये जाने वाला गया घी एक ट्रैक्टर ट्रॉली में भरा जाता है. रूपल की पल्ली में लगभग 25 संस्थाएं सेवाएं दे रही हैं. इसमें हज़ारों स्वयंसेवक अपने-अपने तरीके से काम कर रहे हैं. पल्ली में घी रूपल गांव के लोग नहीं, बल्कि बाहर से आने वाले श्रद्धालु चढ़ाते हैं. पल्ली मंदिर से निकलते ही उस पर घी चढ़ाना शुरू हो जाता है. पल्ली खत्म होने के बाद, आसपास के गरीब लोग इस घी को भरकर घर ले जाते है. रूपल की पल्ली के इतिहास के बारे में मान्यता है कि पांडव इसे जुए में हार गए थे और शर्त के अनुसार, उन्हें 12 वर्ष का वनवास और 13 वर्ष के गुप्त अज्ञातवास में रहना था. 12 वर्ष का वनवास सफलतापूर्वक पूरा हुआ. लेकिन गुप्त अज्ञातवास का तेरहवां वर्ष पांडवों के लिए अत्यंत कठिन था, क्योंकि युधिष

महाभारत युद्ध जीतने के बाद, पांडव माता कुंती और द्रौपदी के साथ यहां आए थे. उस समय, पांडवों ने सबसे पहले सोने की पल्ली बनाई थी. उन्होंने इस पल्ली पर घी चढ़ाया और पूरे रूपल गांव की परिक्रमा की. जिस दिन पांडवों ने पल्ली बनाई थी, वह आसो सुद नोम का दिन था. उसके बाद से, हर साल गुजराती कैलेंडर के आसो सुद नोम के दिन रूपल गांव में पल्ली बनाने की परंपरा चली आ रही है.

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